तुमसे मिलकर

तुमसे मिलकर कुछ ऐसा, आज लगा फिर दिल को,
हर बार ही ठोकर खाना, एक काम मोहब्बत का है।
कोई तोड़ गया दिल उसकी, यादों में नीर बहाना,
हर बार ही मन बहलाना, एक काम मोहब्बत का है


जो झूठ लिए फिरते हैं, ऐतवार वो क्या समझेंगे,
व्यापार है जिनकी फ़ितरत, प्यार वो क्या समझेंगे,
जो चाह भरी थी मन मे, एक गीत बना गाया था,
हैं तोड़ गए जीवन का, आधार वो क्या समझेंगे।
पर प्रीत भी कैसे कह दे, वो निष्ठुर ही हैं माना,
आंखों से छुप-छुप बहना, एक काम मोहब्बत का है।
तुमसे मिलकर कुछ ऐसा, आज लगा फिर दिल को,
हर बार ही ठोकर खाना, एक काम मोहब्बत का है

हाँ जान गए क्यों तुमको, थी छूने की बेताबी,
तुम तन के अनुरागी थे, मैं मन की थी अनुरागी,
वो प्रीत ही क्या प्रियतम के, जो मन को ठेस लगाए,
हो चाह जिसे बस तन की, वो मन को कैसे पाएं
पर प्रीत को तुमने समझा, एक खेल ही है जीवन का,
सपनो संग ही बह जाना, एक काम मोहब्बत का है।
तुमसे मिलकर कुछ ऐसा, आज लगा फिर दिल को,
हर बार ही ठोकर खाना, एक काम मोहब्बत का है।

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