शिला सा ये मन
है शिला सा ये मन, माना हमने प्रिये,
लेख लिखने नया एक चले आइए,
प्रेम का सिलसिला जो हुआ ही नही,
उसका आगाज है गौर फरमाइए।
मेघ सी उड़ रही, है हवाओ में जो,
इन बलाओं को, थोड़ा तो आराम दो,
गर मोहब्बत प्रिये, मुझसे करते हो तुम,
मेरी धड़कन को आओ जरा थाम लो
बेसुरी हो रही, प्रीत की सरगमे,
दिल को कोई नया गीत दे जाइये।
प्रेम का सिलसिला जो हुआ ही नही,
उसका आगाज है गौर फरमाइए।
एक तेरी आरजू हमने की तो मगर,
अपने मन पर मुझे एक हक़ दीजिये,
तेरा फूलों सा तन, निर्मल गंगा सा मन,
तुम हो मंजिल वही, रहगुजर दीजिये,
मन तुम्हारा भी है, मन हमारा भी है,
आग्रह प्रेम का बस, चले आइए।
प्रेम का सिलसिला जो हुआ ही नही,
उसका आगाज है गौर फरमाइए।
कोई झंकार सा, है हृदय का गयन,
नींद से बेखबर, हो गया अब शयन,
न कोई आरजू, जैसे सब मिल गया,
कर लिया प्रीत ने, जब तुम्हारा चयन,
मन के आंगन में स्वागत तुम्हारा प्रिये,
स्वप्न में आइए, साथ खो जाइये।
प्रेम का सिलसिला जो हुआ ही नही,
उसका आगाज है गौर फरमाइए।
तुम जो नाराज होंगे मुझपे सखे,
मैं मना लूंगा तुमको यकीन तो करो,
फूल का बिस्तरा, स्वप्न की ओढ़नी,
मैं सजा दूंगा तुम हमनशीं तो करो।
जो कांटे थे पलको ने हैं चुन लिए,
बेधड़क दिल की बगिया में आ जाइये
प्रेम का सिलसिला जो हुआ ही नही,
उसका आगाज है गौर फरमाइए।
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