उमंग
तपती धरती, बारिश का इंतजार आह, आ गई फिर पुरवाई,
सावन की हौली सी रिमझिम, मस्ती सी जग पर है छाई।
तन मन नाचे, छाये हैं घन, बिन बात ही देखो गाये ये मन,
हर ओर हुआ कुछ ऐसा कि, खुद प्रकृति ने ली है अंगराई।
आह, आ गई फिर पुरवाई।
अब तो गीत नए पनपेंगे, फिर से होगी नई कहानी,
वो दिख जाए तो खिल जाये, मुरझाई सी मेरी जवानी,
है सब अरमा बहके शायद, मिट जाएगी अब ये जुदाई,
सावन की हौली सी रिमझिम, मस्ती सी जग पर है छाई।
आह, आ गई पुरवाई।
बरसों बरसे, झूम के बदरा, मन का कोर रहा है सूखा,
तपती धरती सा झुलसा मन, वृक्ष प्रेम का रहा है ठूँठा।
शायद अबकी सावन के संग, हो जाएगी प्रेम बुआई।
सावन की हौली सी रिमझिम, मस्ती सी जग पर है छाई।
आह, आ गई फिर पुरवाई।
लगते हैं कुछ नए नए से, सावन भादौ हैं अनजाने,
यौवन का ये असर है शायद, अबकी होंगे नए फ़साने,
मेघों से दो बूंद गिरी और, तन, मन ने ली मादक अंगराई
सावन की हौली सी रिमझिम, मस्ती सी जग पर है छाई।
आह, आ गई फिर पुरवाई।
आ भी जाये तो कैसे मन, प्रियतम की पहचान करेगा,
सखियों के संग बाग में पूरे, कैसे सब अरमान करेगा
तन्हा बैठूँ वो आ जाये, भूल ही जाऊं सारी ख़ुदाई,
सावन की हौली सी रिमझिम, मस्ती सी जग पर है छाई।
आह, आ गई फिर पुरवाई।
जब होगा वो सामने मेरे, मन पर मेरा जोर न होगा,
नयनों से नैना बोलेंगे, शब्दों का कोई मोल न होगा,
ऐसा होगा वैसा होगा, दिल ने क्या क्या आस लगाई।
सावन की हौली सी रिमझिम, मस्ती सी जग पर है छाई।
आह, आ गई फिर पुरवाई।
काश मिलन हो जाये उनसे, जन्मों तक ये साथ न छूटे,
मधुयामिनी हों सब रातें, जन्मों तक ये हाथ न छूटे,
मेरे वो और उनकी मैं बस, हो जाएं जैसे परछाई,
सावन की हौली सी रिमझिम, मस्ती सी जग पर है छाई।
आह, आ गई फिर पुरवाई।
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