तुम्हारा चेहरा हैं चांद जैसा
तुम्हारा चेहरा हैं चांद जैसा, तुम्हारी जुल्फें घटा बनी है।
दीवाने कट कट के गिर रहे हैं, तुम्हारी नजरें कज़ा बनी है।
न्याय भला अब करेगा कैसे, इंसाफ का जो है देवता भी।
उसकी नज़रों में तू ही तू एक, दिल की हसरत जवां बनी है।
कहीं किसी दिन निकल न जाना, कोई कन्हैया मन हार बैठे,
ये घाट यमुना के बहके-बहके, सुरा तुम्हीं से हवा बनी है।
कोई नज़र में बसा हुआ है, मगर जहां को दिखाऊँ कैसे,
कि कौन लेकर गया है चैना, ये साँसे किसकी सदा बनी है।
हैं खेल दिल के बड़े ही निष्ठुर, जो चाहा उसको ही पाना मुश्किल,
कोई बचाए हमें हमीं से, अब खुद की चाहत सजा बनी है।
निगाह भर के न देख पाया, लो बीती अंतिम पहर मिलन की,
भला मैं कैसे ये चांद छू लूं, मेरी ये उलझन ख़ता बनी है।
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