तुम ही तुम

ये तुम्हारा रूप अद्भुत मन को लुभाएगा प्रिये,
तुमसे मिलकर कोई मन को कैसे भायेगा प्रिये।
नयन जड़वत हो गए, सरिता से चंचल जो थे,
तुमको पाकर और कुछ मन, कैसे चाहेगा प्रिये।


ज्ञान की बातों से कैसे, मैं तुम्हारा ध्यान कर लूं,
कान्हा कैसे विश्व तुम्हारा, रूप दो नयनो मे भर लूँ,
कैसे कर लूं घोर तप मैं, जो तुम्हारे ही लिए हो,
कैसे मुरली भूल जाऊं, चक्र का क्यों गान कर लूं।
हे मेरे श्याम सलोने, हे मुरलीधर, पद्मनाभ सुनो,
तुमसे मुझको प्रेम का भी, ये मधुर अभिमान न दो,
मैं का तम मन से मिटे मन, तुझको पायेगा प्रिये,
तुमको पाकर और कुछ मन, कैसे चाहेगा प्रिये।


सच कहा तुम बिन कठिन होगा ये जीवन का सफर
सच कहा तुम बिन सजेगी न कभी यमुना की डगर,
पर अगर देखो जरा तुम श्याम अपने ज्ञान से,
तुमसे ये है सृष्टि सारी, तुमसे ही सब चर अचर,
यशोदानंदन, हे गोविन्दम, हे माधव, गोपाल सुनो
तुमसे मैं और मुझसे तुम, जो अलग करे वो ज्ञान न दो,
प्रेम अगर जो न रहा, मेरा जीवन मिट जाएगा प्रिये,
तुमको पाकर और कुछ मन, कैसे चाहेगा प्रिये।



दीप का तो लक्ष्य बस एक, रोशनी का दान भर है,
पथ कोई हो उसको तो बस रोशनी का मान भर है,
प्रभु चरण, जीवन मरण हो, मंदिर हो या वास अंतिम,
दीप को बस तम हरण का ही मिला एक ज्ञान भर है,
हे मनमोहन, हे मुरलीधर, हे कृष्ण, हे गिरिधर सुनो
बुद्धि हरो मुझमे तो बस एक, भक्ति ही भगवान भर दो,
एक तुम्हें जो पा लिया मन, किसको पायेगा प्रिये,
तुमको पाकर और कुछ मन, कैसे चाहेगा प्रिये।

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