सुबह सुबह जो छू लेते हो...

सुबह सुबह जो छू लेते हो, तुम इस तन की डाली को,
प्रेम भरा आलिंगन करता, ज्यों भंवरा फुलवारी को।
नयन ये बरबस झुक जाते हैं, लब लब पर आ रुक जाते हैं,
लहरा उठता है मन का सागर, पा गालों पर लाली को।

स्वर्ग हुई है जीवन बगिया, पावन मन का कोना-कोना,
तेरा होना मुझको भाया, तुम ही अब जीवन का गहना,
आस यही कि भूल के खुद को, मन में तेरे छुप जाऊं,
प्रीतम मेरे थाम लो आकर, मन की तुम लाचारी को,
सुबह सुबह जो छू लेते हो, तुम इस तन की डाली को,
प्रेम भरा आलिंगन करता, ज्यों भंवरा फुलवारी को,

टूट गई सब लाज की गाठें, सदियों से थीं प्यासी रातें,
मिलन के इस आवेश में भूली, करनी तुमसे कितनी बातें,
राज सभी खुलते जीवन के, राग नए बजते हैं मन के,
तुम ही कह दो थाम लूं कैसे, इस यौवन मतवाली को।
सुबह सुबह जो छू लेते हो, तुम इस तन की डाली को,
प्रेम भरा आलिंगन करता, ज्यों भंवरा फुलवारी को।

प्रथम मिलन मधुमास की रातें, इतनी जीवन की सौगातें,
तुम को पाया अब पाना क्या, सब पूरी मन की फरियादें,
सब मधुमय है जीवन लय है, अमर हमारा ये परिणय है,
तुमसे मेरा तन मन रोशन, भूल ही बैठी दीवाली को।
सुबह सुबह जो छू लेते हो, तुम इस तन की डाली को,
प्रेम भरा आलिंगन करता, ज्यों भंवरा फुलवारी को।
~Vishu "आनंद"

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