फेसबुक से दूर रहो

"फेसबुक चलाने वाली सभी माताओं और बहनों को।

हमारा एक सुझाव है।

आज फेसबुक पर कुछ ऎसे लोग मौजूद हैं।
जिनका मकसद माताओं और बहनों को फ्रेंड बना कर उन्हें शोसित करना है।

अतः आप सभी बहनों से मेरा हाथ

जोड़कर निवेदन है।
अपनी फ्रेंड लिस्ट सीमित रखें।

या फिर किसी भी फ्रेंड के गलत कमेंट देखकर उन्हें तुरंत अपनी फ्रेंड लिस्ट से तुरंत ही ब्लॉक कर दें।

किसी से भी किसी प्रकार की बहस ना करें।

इस पोस्ट के माध्यम से हमारा सिर्फ एक ही मकसद है।
कि हमारी सारी माताएं एवं बहने सुरक्षित रहें।"


फेसबुक पर एक पोस्ट पढ़ी जो ऊपर दी गई है, जिसको पढ़े लिखे लोग शेयर करते है कि फ्रेंड्स न बनाओ, बात न करो, महिलाएं शेयर करतीं है पढ़ कर लगता है वो डरा रहीं हैं, औरत होने की सज़ा देने को उतारू हैं। हमेशा औरतों को बोला जाता है डरो, डरो डर कर रहो, घर से बाहर न निकलो, घूंघट करो, बात न करो, कुछ गलत हो तो छुपाओ, कोई गलत करे तो भी तुम्हारी गलती है। तुम औरत हो, तुम टुच्ची हो, तुम्हारी अस्तित्व की सीमा पुरुष है। तुम सिर्फ उसके सेवा के लिए हो, उसके लिये खाना बनाओ, पानी दो, कपड़े धोने का काम करो, परिवार सम्भालो, बच्चे पैदा करो और रात को उसके बिस्तर में भी उसको खुश करो, यानी 24 घंटे में से तेरा कुछ नही। ये तेरे औरत होने का सम्मान है। तेरे लिए ये चारदिवारी के अलावा कुछ और नही। तू इसी में पैदा हुई यही से अर्थी में जयेगी। 

FB से भी दूर रहो, बाहर न जाओ, किसी से दो बातें न करो क्योंकि इससे तुम्हारी आंखे खुल सकती है। ये सिर्फ पुरुष के लिए है, तुम किसी और से बात कर लोगी मतलब उसकी हो जाओगी, उसको अपना सब सौप दोगी, तुम्हारा खुद पर काबू कहाँ है तुम तो बस भूखी हो किसी ने दो शब्द बोल दिए और तुम सीधा उसके बाहों में गिरोगी, उसके बिस्तर में आ जाओगी। इसलिए अपने को बचाओ, सारी दुनिया तेरे को खाने को खड़ी है बचो इनसे, चुप रहो, फेसबुक न चलाओ, बाहर काम न करो, चुप रहो, साड़ी पहनो घूंघट करो, सीधा बोलूं तो अपनी औकात में रहो, तुम्हारी औकात पुरुष की जूती बनने की है।

आप सबको लग रहा होगा कि क्या बात लिखी, 21वीं सदी में किस जमाने की बातें, लड़कियां उड़ रही हैं, जीत रही है, खेल रहीं हैं, जी रहीं हैं, लिव इन मे रह रहीं हैं, लड़को को खुद चुन भी रही हैं, परपोज़ भी कर रहीं है, दारू सिगरेट, पार्टी पब सब कर रहीं है तो ये किस जमाने की बात। लेकिन ये वो सच है जो आज भी हमारी मानसिकता में है, हमारी सोच में है। कि औरतों को बाहर नही निकलने देना, निकले तो वो छुप कर ढक कर रहे। अपनी पत्नी ढकी रहे और दूसरे की खुली रहे ताकि नज़र सेक सकें। ये पुरुषवादी सोच को खत्म करना ही स्त्री के लिए स्वर्ग है। फेसबुक पर कैंटोल करने को कह कर उनको डराने की बजाय उनको खुल कर जियो कहो, जो गलत हो उसकी इज़्ज़त वहीं उतार दो, औरत हो कोई बिना रीढ़ का प्राणी नही, तुम ही शक्ति हो तुम ही जीवन दाता इसलिए कोई जब अंगुली उठाये तो वही अंगुली तोड़ कर उसके हाथ मे दे दो, चाहे वो अंगुली बाप उठाये, भाई, पति, ससुर, रिश्तेदार, पड़ोसी, अंकल कोई भी उठाए उठाने वालों में औरतें भी शामिल है कोई भी किसी भी रूप में किसी भी वजह से हो सकती हैं, अगर अंगुली उठे तो तोड़ देने की ताकत तुममें ईश्वर ने दी है तोड़ दो। तभी दुनिया को पता चलेगा कि औरत सिर्फ कहने के लिए दुर्गा नहीं, वो सत्य में शक्ति है। वो शिव नही लेकिन उनकी शक्ति जरूर है और जब शक्ति अपने पर आती है तो कोई उसको रोक नही सकता, न समाज, न पुरूष, न सृष्टि, और न खुद शिव।

उठो समाज को दिखाने का समय है कि तुम कोई अछूत नही पहले तुम मानव हो, मानव की आधी जनसंख्या की प्रतिनिधि हो, तुम जीवन का दान देती हो। अगर तुम न हो तो सृष्टि का नाश होने से स्वयं ब्रह्म, विष्णु या महेश, अल्लाह, ईसा, महाबोधि बुद्ध या कोई ईश्वर नही बचा सकता। तुम ही प्रकृति का प्रतिरूप हो। तुम्हारे सहयोग के बिना जीवन का अस्तित्व नही। उठो, खुद को पहचानो, अपने अधिकार ले लो, न मिले तो छीन लो, क्योंकि ये तुम्हारा अधिकार है तुम्हारा स्वाभिमान है। तुम्हारा अस्तित्व ही सृष्टि का आधार है। 


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