बदला

फिर हुआ कायरता का, एक नया गुनगान यहां।
आतंकी आकाओं ने फिर, दिया घाव पुलवाम यहां,
वीर सपूत पड़े बिखड़े है, भारत मां के आंचल मे,
नपुंसक सत्ता देखो करती, झूठा बदले का गान यहां।


सन सैंतालीस मे धोखे से, कश्मीर तिहाई कब्जया,
शन्ति दूत बन बैठे हम, देश का हिस्सा हथियाया,
यकीं नही था वीरों पर, शरण यू.एन.ओ. जा बैठे,
दो दिन मे जो मिट जाता था, नासूर उसको बना बैठे,
और सभी गाते है मिलकर, लौह, नेहरु के गान यहां
नपुंसक सत्ता फिर देखो, करती झूठा गान यहां।


सन पैसंठ-एकहत्तर मे घुसकर, हमने दाँत ऊखाड़े थे,
लाहौर-करांची तक गूंजे तब भारत मां के नारे थे,
तब बिल्कुल हो ही जाना था, दूर सभी विवादों को,
राजनीती का हुआ खेल, छोड़ दिया अधिकारों को,
तब ले लेते तो हो जाता, खत्म कश्मीर का गान वहाँ,
नपुंसक सत्ता देखो करती, झूठा बदले का गान यहां।


फिर से आ बैठे निन्यानवे मे, गीदर से कायर थे कुछ,
मार गिराये हमने भी, कारगिल मे पागल कुत्ते थे तुच्छ,
वीर जवान अदम्य साहस ले, आगे बढते जाते थे,
भारत मां की लाज बचाने, शीश स्वयं ही चढ़ाते थे।
नेताओ ने दिया, सुरक्षित वापसी का फिर, फरमान यहां।
नपुंसक सत्ता देखो करती, झूठा बदले का गान यहां।


लाहौर बस ले जा कर हम शान्ति का गीत गाते है,
पीछे से कारगिल मे आकर, वो हमको आंख दिखते है,
हम जाकर फिर से जन्म दिवस का केक मजे से खाते है,
पठानकोट आकर के वो, विश्वास मे आग लगाते है,
आतंक पोषित करने वालो ने, किया नया है वार यहां।
नपुंसक सत्ता देखो करती, झूठा बदले का गान यहां।


फिर मत बोलो की वीरो की, शहादत व्यर्थ ना जायेगी,
फिर मत बोलो की ऐसी हरकत, फिर से सही ना जायेगी,
हर बार यही कहते हो तुम सब, सत्ता मे ये हों या वो हों,
हर बार तुम्हारी बुजदिली, यूँ ही, माओं के बेटे खायेगी।
दो दिन को सेना से कह दो, स्वतंत्र हथियार चलाने को,
वीरों को आदेश ये दे दो, आतंक समूल मिटाने को।
बस तुम शान्ति के गीतो का, बन्द ये व्यापार करो,
और मिली चुनौती रण की जो, सहर्ष उसे स्वीकार करो
गर डरते हो तो छुप जाओ जाकर, दूर कही कंदराओं मे,
पर मत रोको वीरो को फिर तुम, झूठी अपनी व्यथओ मे
अब ना चलेगा सत्ता के मनमर्जी का पैगाम यहां।
नपुंसक सत्ता देखो करती, झूठा बदले का गान यहां।

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