बलिदान

फिर नया आतंक संहार हुआ,
फिर मां का आंचल है लाल हुआ।
कब तक तुम धोखेबाजो को,
जाकर के गले लगाओगे।


भाषण नही कुछ काम करो।
खत्म आतंक का धाम करो।
हर बार कहा पछताएंगे वो,
जो कहा उसे अंजाम करो।
जो कर ना पाओ तो डूब मरो,
ले चुल्लू मे पानी कूद मरो,
लेकर 56 इंची सीना, तुम
कितने लालों को खाओगे।


मायें शोकाकुल फूट रही
सजनी की चूड़ी टूट रही,
राखी पर रोती बहनो को,
भाई के टूटे स्वप्नो को,
बेटी की दीप्त आशाओं को,
जीवन की अभिलाषाओं को,
तुम राजनीती के वीर भला,
मुहँ अपना कैसे दिखाओगे।


अब भी ना उबले तो खून नही,
करो राजनीती की भूल नही,
अब तक हर बार छ्ल उसने,
उसकी बुद्धि क्रूर बड़ी,
हम हर बार छ्ले जाते,
जब शन्ति के गीत कहे जाते,
कब छोड़ के तुम नकारापन,
युद्ध की ललकार लगाओगे।


उठा भी लो रणभेरी ये,
हुई पीर बहूत ही घनेरी ये,
आपने वीरो का सम्मान करो,
ना बिना लड़े बलिदान करो,
हम मिलकर धूल चटा देंगे,
मिट्टी आतंक मिला देंगे,
कब राजनीती को दूर बिठा,
यकीं वीरो पर दिखाओगे।

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