कुछ दिल की आरज़ू में

कुछ दिल की आरज़ू में,
कुछ तेरी जुस्तजू में।
कई बार सबने लूटा,
कई बार दिल ये टूटा।
हर बार ये ही सोचा,
इसी राह पर है मंजिल।
हर बार खो गया में,
हर बार सपना टूटा।
कुछ दिल की आरज़ू में,
कुछ तेरी जुस्तजू में।

थी मेरी भी तमन्ना,
मंजिल तो पा ही जाऊँ।
है शूल शैय्या लेकिन,
फूलों का सुख भी पाऊँ।
एक फूल चहता हूँ,
ना आरजू चमन की।
घर हो तनिक तो रोशन,
एक दीप जो जलाऊं।
थे शायद कर्म अधूरे,
और भाग्य हमसे रूठा।
कुछ दिल की आरज़ू में,
कुछ तेरी जुस्तजू में।

जग चाहता है कोई,
अरमाँ ना दिल सजाये।
कोई डूबते को हरगिज,
तिनका भी दे ना जाये।
दिल फिर भी इस समर मे,
हर बार उतर गया है।
माझी है समझा जिसको,
तूफां वही उठाये।
कैसी रजा है रब की,
जिसको है चाहा छूटा।
कुछ दिल की आरज़ू में,
कुछ तेरी जुस्तजू में।

है शाम भी सुहानी,
सूरज भी ढल रहा है।
उड़ पक्षियों का रेला,
घर को निकल पड़ा है।
मै गीत गाना चाहूँ,
सँगीत ही नही है।
मन मेरा बिन तुम्हारे,
तन्हा विकल खड़ा है।
तुझे भूलने की कोशिश,
खाया तो बस है धोखा।
कुछ दिल की आरज़ू में,
कुछ तेरी जुस्तजू में।

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