नैन तुम्हारे चंचल

है नैन तुम्हारे चंचल-चंचल
फूल से भी कितनी नाज़ूक हो।
है बोली जैसे मखमल तेरी,
सँगीत से भी तुम नाज़ूक हो।
है भोली अदायें देखो कातिल,
दीवाना बनाये मुझको जग को।
कान्ति हो तुम ही दीपक की,
किस्मत से ही तो हासिल हो।

हैं फूल अचंभित देखो अब तक,
क्या-कैसे वो सिंगार करेंगे,
है बाग भी कुछ तो बहके-बहके,
कैसे जग गुलजार करेंगे,
जो तुमने किया था जादू मुझपर,
सालों से है तनिक ना उतरा,
मौत भी अब आ जाये लेकिन,
ना तेरी जुदाई अब हासिल हो।

मुश्किल मे तो खुदा भी खुद है,
फिर तुझसा वो बनाये कैसे,
तेरे सिवा जन्नत को भी,
कोई भला भा जाये कैसे,
तुम मेरे हो जन्मो तक तो,
दोनो जहान अब कुछ भी करले,
अब सारी खुदायी देकर भी,
तू उसको अब ना हांसिल हो।

है कुछ भी अधिकार नहीं पर,
स्वप्नो का एक सार हो तुम ही,।
जग हमको ठुकरा दे चाहे,
हमको तो स्वीकार हो तुम ही।
प्रीत पर तेरी मिट भी जाऊँ,
तेरे सिवा कुछ चाह नही है।
साँस सी तुम हो आती जाती,
जीवन का तुम ही हासिल हो

Comments

Popular posts from this blog

अरमानों पर पानी है 290

रिश्ते

खिलता नही हैं