अपनी न को तू हाँ में बदल दिलरुबा
अपनी ना को, तू हाँ में बदल, दिलरुबा।
मेरी चाहत, पर तू भी मचल, दिलरुबा।
किसने बोला, कि तुझमे, मैं शामिल नहीं।
तुझपर है बस, मेरा ही असर, दिलरुबा।
कुछ कहो तो सही, कुछ सुनो तो सही।
हसरतें, दिल में कुछ तुम, बुनो तो सही।
हो गया इश्क़, तो फिर, छुपाना भी क्या,
मान लो, दिल की बस सब, कही अनकही।
तुझसे नजरें मिलीं, दिल तेरा हो गया,
कब तक भटकेगा, दिल दर-बदर, दिलरुबा।
अपनी ना को, तू हाँ में बदल, दिलरुबा।
मेरी चाहत, पर तू भी मचल, दिलरुबा।
क्यूँ ये नजरें झुकी, क्यूँ लरजते हैं, लब,
क्या-क्या कहने, को इतना तरसते हैंं, लब,
आ मेरे पास, चाहत की आगोश में,
तेरे दीदार को एक, तरसते हैं, सब,
तू चली आ, जमाने को अब दूँ, बता,
है मोहब्बत मुझे, किस कदर, दिलरुबा।
अपनी ना को, तू हाँ में बदल, दिलरुबा।
मेरी चाहत, पर तू भी मचल, दिलरुबा।
इस जमाने की, बातों को विराम दे,
धड़कनो को भी, थोड़ा सा आराम दे,
इस जमाने ने समझा है, कब प्यार को,
दिल से दिल को, मोहब्बत का पैगाम दे।
हो कोई भी डगर, हाथ ले हाथ में,
साथ गुजरे ये, जीवन सफर, दिलरुबा।
अपनी ना को, तू हाँ में बदल, दिलरुबा।
मेरी चाहत, पर तू भी मचल, दिलरुबा।
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