अप्सरा
आज देखी एक अप्सरा सी,
लगा स्वर्ग से सीधी उतरी,
माथे पर सुर्य सजाये,
सन्ध्या का पट पहने उतरी
नयन विशाल, सम गहरा सागर,
होठ गुलाब रस बहता गागर,
गर्दन मृग मनभावन जैसे,
मलीन दुग्ध भी धवल ऐसे,
आज देखी एक अप्सरा सी,
लगा स्वर्ग से सीधी उतरी,
मेघो से लट बिखराती इस ढंग,
ढके विशाल हिमालय के तुंग
बदन मरमरी, नाज़ूक कलाई,
छुए ना पुष्प होवे कालाइ,
उदर लगे हो, दर्पन जैसे,
हुई चंद्रिका अर्पण जैसे,
आज देखी एक अप्सरा सी,
लगा स्वर्ग से सीधी उतरी,
सरिता का अभिमान भी तोड़े,
कमर ठुमक कर ऐसे डोले।
पग विशाल, हो वृक्ष ज्यो तारी,
चरण सुकोमल, पुष्प बलिहारि।
हुआ चमत्कृत हृदय ये सूना,
हर्ष हुआ मेरा कई गूना
आज देखी एक अप्सरा सी,
लगा स्वर्ग से सीधी उतरी,
Comments
Post a Comment