तुमसे बड़ी उम्मीदे थी

तुमसे बड़ी उम्मीदें थी जो, 
एक पल मे ही तोड़ दी तुमने। 
कश्ती फंसी भँवर मे ज्यो ही, 
मंजिल की जिद छोड़ दी तुमने।

कुछ जो बात थी दिल मे वो, 
मुझसे खुलकर तो कह देते,
ये क्या अब तो बात ही करनी, 
मुझसे ऐसे छोड़ दी तुमने।

अब भी ये दिल कहता है, 
सीने से लगा लोगे मुझको तुम।
हसरत भले ही दिल की सारी, 
तिनका तिनका, तोड़ दी तुमने।

प्रेम तुम्हे जो मुझसे न था, 
बरसो क्यों तुम साथ चले थे,
ऐसा क्या की प्रेम की नेमत, 
चंद पैसों में मोल दी तुमने।

बाग खिलाये सूखे दिल मे, 
और स्वप्नों के महल बनाये,
पल में कैसे सारी कलियां,
खुद कदमो रौंद दी तुमने

साहित्य अंकुर के 1 जुलाई 2019 अंक में प्रकाशित

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