तुम बिन हम मर भी न पाए

इन आँखों ने कह दी सारी,
जो बातें लब कह न पाए,
तुम बिन जीना मुश्किल लेकिन,
तुम बिन हम मर भी न पाए।

गीत नही संगीत नही कुछ,
नीरस जीवन की धारा थी,
दीप जले घर मंदिर-मस्जिद,
मन मे बस विरह हाला थी।
तुमने हंसकर जब देखा था,
चहुं ओर सजी, स्वप्नों सी झांकी,
आंख खुली और बिख गये सब,
हम फिर से, बस थे एकांकी।
स्वप्न में तुम हम मिले हजारों,
दिवा भए, तो स्वांग रचाए,
तुम बिन जीना मुश्किल लेकिन,
तुम बिन हम मर भी न पाए।

कैसा होगा, जब जीवन ये
जीवन का प्रतिकार करेगा।
क्षण भर मिलना, और ये बिछड़ना,
कैसे मन स्वीकार करेगा,
कुछ तो ऐसा भी हो जाता ,
समय यही पर थम-रुक जाता,
तुम अपने मे भर लेते मुझको,
तेरा-मेरा सब मिट जाता।
हुआ नही कुछ चाहा मेरा,
कुछ मन का हम कर ना पाए।
तुम बिन जीना मुश्किल लेकिन,
तुम बिन हम मर भी न पाए।

Comments

  1. क्या बात है !! बहुत प्यारी रचना | प्रेम के समर्पित रूप को बड़ी वेदना से दर्शाती हुई | सस्नेह शुभकामनायें|
    स्वप्न में तुम हम मिले हजारों,
    दिवा भए, तो स्वांग रचाए,
    तुम बिन जीना मुश्किल लेकिन,
    तुम बिन हम मर भी न पाए।!!!अति सुंदर !!!

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    1. धन्यवाद आप प्रतिलिपि पर हो।धन्यवाद हौसला बढाने के लिये

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