इन आँखों की मस्ती में है
इन आँखों की मस्ती में है,
दोनों जहां की जीवन रेखा,
इन होठों की लाली, लेकर,
शाम ढले आलम है मय का।
कौन कहे क्या, बीत रही है,
दीवानों की इस महफ़िल मे
मेरा दिल जो कहना चाहे,
बात वही सबके है दिल मे,
गूंज गई है एक आह सी,
लुटा कोश सांसो की लय का
इन होठों की लाली, लेकर,
शाम ढले आलम है मय का।
हुआ चंद्र भी आज है लज्जित,
रात पूर्णिमा है तो क्या है।
तुझसे नजरें ना मिल जाये,
इसी लिये जा चांद छुपा है,
मेघराज ने आज बजाया,
बिगुल निरंतर तेरी ही जय का।
इन होठों की लाली, लेकर,
शाम ढले आलम है मय का।
रूप ने कर सबको दीवाना,
प्रेम अगन ऐसी भड़काई,
बन परवाना झूम रहे सब,
जल जाने की होड़ लगाई,
जीवन तेरे नाम लिखा सब,
नाश हुआ मरने के भय का,
इन होठों की लाली, लेकर,
शाम ढले आलम है मय का।
ढल जायेगी कल ये जवानी,
प्रीत मगर गुलजार रहेगी,
पतझड़ आये या कोई आँधी,
दिल मे बस आबाद रहेगी,
साथ तुम्हरा मिल जाये बस फिर,
फर्क मिटे, पराजय और जय का
इन होठों की लाली, लेकर,
शाम ढले आलम है मय का।
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