कवि की आशा

आस नहीं कि इस दुनियां में, कुछ गीतों से जाना जाऊं।
आस नहीं बस शब्दों का, एक समंदर माना जाऊं।
आस नहीं कि ये दुनियां, मुझको कोई सितारा समझे,
आस यही कि, बस तेरे ही, होठों पर सज जाना चाहूं।

स्वप्नों का कुछ मोल नहीं जो, स्वप्न तुम्हारे शामिल ना हो,
उन अश्को से, क्या मुझको जो, प्रेम मे तेरी हासिल न हो।
दीप बुझे तो बुझ जाये सब, प्रेम अगन बन जाना चाहूँ
आस यही कि बस तेरे ही, होठों पर सज जाना चाहूं।

इन नयनो से प्रीत जता कर, प्रेम मेरा स्वीकार किया जब
भूल जगत की सब रीतों को, मन पर था अधिकर किया जब
अब क्या कह दूँ, कैसे कह दूँ, बस तेरा बन जाना चाहूँ।
आस यही कि बस तेरे ही, होठों पर सज जाना चाहूं।

प्रीत भला कैसे हंस कर के, निर्मम जग स्वीकार करेगा,
तेरा मचलना, मेरा बहकना, कैसे ना प्रतिकार करेगा,
जग कुछ भी कर ले मै तुझसे, प्रेम अमर कर जाना चाहूँ,
आस यही कि बस तेरे ही, होठों पर सज जाना चाहूं।

कब से ढूँढ रही मधुशाला, जाम उठाने कब आऊंगा,
भूल भला नयनो को तेरे, जाम कोई फिर ले पाऊँगा
तोड़ जगत की सब दीवारे, रीत सभी बिसराना चाहूँ,
आस यही कि बस तेरे ही, होठों पर सज जाना चाहूं।

Comments

  1. बहुत सुंदर प्रेम गीत प्रिय विश्व जी !!!! हर पंक्ति आकंठ प्रेम निमग्न मन का हाल कहती है | प्रेम की इतनी सी कामना ही उसे विशेष बनाती है | सस्नेह -

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