गर हो जिन्दा, कुछ तो सदा कीजिये

फर्ज इंसाँ का, कुछ तो, अदा कीजिये,
गर हो जिन्दा, कुछ तो सदा कीजिये।

फूंक डाले, जमाना, ना जड़ मान कर,
हिलिये-डुलिये, जरा कुछ अदा कीजिये।

क्या हुआ जो कोई न, तेरा साथ दे,
उठिए-चलिये मुश्किलों को फ़ना कीजिये।

सोते-सोते न मिलती है, मंजिल कोई,
स्वप्न देखा तो, कोशिश सदा कीजिये,

टूटना, हारना, क्यू ये मायूसियां
हौसलों से ही आगे बढा कीजिये।

कौन फनकार है, जो ये सब गढ़ रहा,
उसको कूची नई एक थमा दीजिये,

कर्म ही है, बस एक, राह आकाश की,
सदकर्म की ही पूजा किया कीजिये।

रात लम्बी है, तो भी कोई गम क्यू हो,
दीप आशा का बस एक जला लिजिये।

गिरना भी तो सफर का ही इनाम है,
उठिए, फिर रस्ता एक नया लिजिये।

उस विधाता की, अनुपम, रचना है तूं,
उसकी रचना से नफरत तो ना कीजिये।

हम जो चाहें तो फूंकों से रुख मोड़ दें,
डट के तूफांन को ये भी बता दीजिये।

हमने चाहा जिसे, वो मेरा हो गया,
सारे ब्रह्मांड को बस ये जता दीजिये।

है मोहब्बत जिन्हें, वो मिटेंगे नही,
चाहे दुनियां ये सारी, मिटा दीजिये।

हम तो परवाने से, बस खिंचे आयेंगे,
इश्क़ की एक शमा बस, जला लिजिये।

तुमको तो बेवफा, हम न कह पायेंगे,
जफा कीजिये या वफा कीजिये।

vishvnath
8447779510

Comments

Popular posts from this blog

अरमानों पर पानी है 290

रिश्ते

खिलता नही हैं