हर सजा से वाकिफ हूँ
बिजलियां गिराने की, हर अदा से वाकिफ हूँ।
हूँ दीवाना, दिल की मैं, हर सदा से वाकिफ हूँ।
तू मुझे डरा ना यूँ , हाल मेरा क्या होगा,
इस जहाँ में उलफत की, हर सजा से वाकिफ हूँ।
झील सी निगाहों पर, क्यों उदासी छाई है।
मोहनी सी सूरत पर, निशा सी क्यू छाई है,
क्या है दिल में ऐसा कि, जिससे तुम यूँ डरते हो,
तन्हा तन्हा महफ़िल में, खोये खोये रहते हो।
दिल की सारी हसरत को, आज पंख लगा दो बस,
क्यों डरे हो दुनियां से, खुल के सब बता दो बस,
क्या कहेगी दुनियां की, हर व्यथा से वाकिफ हूँ
इस जहाँ में उलफत की, हर सजा से वाकिफ हूँ।
इश्क़ जब हुआ न था, ये जहान साथी था।
हर कहानी में मेरी, हर कदम का भागी था।
क्या हुआ कि सबने क्यू, मुझसे मुहँ ये मोड़ा है,
इश्क़ ही किया मैने, ना घर किसी का तोड़ा है,
ये जमाना वो है जो, मीरा से भी जलता था,
इस जमाने मे मजनूँ भी, मारा-मारा फिरता था,
मैं तो हर मोहब्बत की, दास्ताँ से वाकिफ हूँ,
इस जहाँ में उलफत की, हर सजा से वाकिफ हूँ।
बिजलियां गिराने की, हर अदा से वाकिफ हूँ।
हूँ दीवाना, दिल की मैं, हर सदा से वाकिफ हूँ।
झील सी निगाहों पर, क्यों उदासी छाई है।
ReplyDeleteमोहनी सी सूरत पर, निशा सी क्यू छाई है,
क्या है दिल में ऐसा कि, जिससे तुम यूँ डरते हो,
तन्हा तन्हा महफ़िल में, खोये खोये रहते हो।
दिल की सारी हसरत को, आज पंख लगा दो बस,
क्यों डरे हो दुनियां से, खुल के सब बता दो बस,
क्या कहेगी दुनियां की, हर व्यथा से वाकिफ हूँ
इस जहाँ में उलफत की, हर सजा से वाकिफ हूँ।!!!!!!
किसी अपने के मन को बहलाने की अदा बहुत खूब है | सुंदर भावपूर्ण रचना प्रिय विश्वनाथ जी | सस्नेह बधाई |
अपका बहुत शुक्रिया जी।
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