अच्छा वक्त सबका साथ।

जब तक कि हम खड़े थे,
सब साथ चल रहे थे,
गिरने लगे है जब से,
सब साथ छोड़ते है,
मेरे सामने वो जैसे,
दुनियाँ को थे बनाते,
वैसे ही अब मेरे
जज्बात छेड़ते हैं।

कैसे कहूँ की हमको,
कोई साथ चाहिए बस,
डूबते को तिनके की,
वो बात चाहिए बस,
जमाना क्या कहेगा,
मुझको यही सुनाकर,
किसी और ने बुलाया,
बोला फिर मुस्कुरा के,
बहकाते थे ज्यों सबको,
धीमे से मुस्कुराकर,
वैसे ही अब मेरे
जज्बात छेड़ते हैं।

वो भूलते की उनकी,
हर बात का पता है,
कैसे छुड़ाते पीछा,
इस राज का पता है,
हमसे वो सीधा कहते,
अब साथ न चलेंगे,
अब हो गए परेशां,
तेरी राह न चलेंगे,
बातें जो सभी से,
करते थे मुँह बनाकर,
वैसे ही अब मेरे
जज्बात छेड़ते हैं।

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