जिंदगी क्या है, ताउम्र की तन्हाई है
चाँद तारे सब उतर आये हैं जमीं पर,
जैसे, ऊषा की लाली जमीं पर आई है,
या खिला है इन्द्रधनुष ढ़लती सी शाम में,
चारो तरफ ये कैसी, बेखुद खुमारी छाई है,
सोच रहा हूं उनसे कहूँ, या चुप रहूं मैं,
चुरा गये हैं वो दिल मेरा कैसे कहूँ मैं,
नाम पता मालूम नही, एक मुस्कान है पहचान उनकी,
बस उनकी यादें हैं और चारो तरफ तन्हाई है,
उनसे शिकायत भी की, मिले वो हमसे जब,
कब से इंतजार था, और आप आयें हैं अब,
लगने लगा था तुम न आओगे फिर कभी,
तेरे आने से अरमानों ने जिन्दगी पाई है,
फिर मुलाकातें बढ़ी, दिल मिलते रहे, फूल खिलते रहे,
कह न पाये हम, लव उनके भी खामोश रहे,
मजबूर दिल ने किया तो कहना ही पड़ा हाल-ए-दिल उनसे,
ऐसा लगा सारी दुनियां, मेरी बाहों में सिमट आई है।
वक्त गुजरा, वादे हुए, कुछ कसमें खाई मैने उसने,
ख्बावों की हसींन दुनिया, दिल में बसाई मैने उसने,
हूई दुनियां हसींन थी, रंगीन जिन्दगी थी हुई,
पर अजीब किस्मत खुदा ने मोहब्बत की बनाई है।
बिछड़ गए हम उनसे मजबूरियों के नाम पर,
आज खड़े हैं हम, एक ऐसे मुकाम पर,
पल-पल तिल-तिल, घुट कर जी रहे हैं,
मौत ने भी न आने की, शायद कसम खाई है।
ये किस्सा नही सच्ची दास्तान है मोहब्बत की,
कैसे लूं मैं नाम उसका, मजबूरियां हैं मेरे दिल की,
जिस मोहब्बत ने खुदा बनाया, बनाई हर चीज जग की,
क्यूं जमाने ने हर बार, उसपर बंदिशें लगाई है।
अब जिंदगी क्या है, ताउम्र की तन्हाई है..........
बहुत दर्द भरी दास्ताँ पिरोई गयी है रचना में --
ReplyDeleteजुदाई ही नसीब है मुहब्बत का शायद -
नहीं तो हीर रांझे की होती -- लैला को मजनू मिल जाता |
!!!!!!! सस्नेह
ससुंदर तरीके से आप हौसला बढ़ाते हो
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