तुम्हारी नजरों से पी कर बहका

तुम्हारी नजरों से पी मैं बहका, 
जमाना या खुद बहक गया है,
नशा तुम्हारा चढ़ा है ऐसा, 
खिजां का मौसम महक गया है।

जरा सा ही तो छुआ था तुमको,
बदन हमारा हुआ है चंदन,
था भोला भाला हमारा दिल ये,
मिला जो तुमसे चहक गया है।

है रात प्यासी हमारी कब से,
तुम्हारी सांसों में डूबना था,
नजर झुकाई हैं तुमने ऐसे,
कि शोला तन में दहक गया है।

जरा छुओ फिर ये घाव दिल के,
भरेंगे कैसे बिना तुम्हारे,
दीए जलाए जो रोशनी को,
ये घर उसी से लहक गया है।

कोई नहीं जो बताए हमको,
कहां पे मन को करार होगा,
कि दर्द खुद ही दवा हुआ है,
हमें तो कोई यूं छल गया है।

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