ये जीवन है (भाग 13-15)

अब तक के भाग में अपने पढ़ा कि शांति जी बेटे राहुल के हाल के बारे में रवि को बताती है राहुल अपना सपना बताता है उसके बाद दवाइयों और काउंसिलिंग से उसकी हालत सुधरती है लेकिन दो महीने बाद अजय की मौत बड़ी अजीब परिस्थिति लगभग राहुल के सपने की तरह जाती है। सब लोग दहशत में डूब जाते हैं। अब आगे....

राहुल ने किसी से भी बात करना बंद कर दिया था। डॉक्टर ने बताया कि उसे फिर से गहरा सदमा लगा है। बार-बार लगे सदमे ने उसको इस हाल में पहुंचा दिया है कि अब अगर कोई और बात हुई तो शायद वो अपना मानसिक संतुलन पूरी तरह से ही न खो दे। उन्होंने ये भी बताया कि अब उसका इलाज करना और मुश्किल होगा क्योंकि अब वो ये नहीं मान पायेगा की उसका सपना बस सपना था। मोहन को लेकर उसका मन और ज्यादा डर गया है। अजय के साथ जो भी हुआ वो इसकी आंखों के सामने ही हुआ। जो हुआ वो तो किसी भी आम इंसान को भी सदमे में पहुंचाने के लिए काफी था और राहुल जो पहले से ही इसी तरह की बुरी यादों से घिरा हुआ है उसके सामने ही बुरी यादों का सच बनकर सामने आ जाना कितना दर्दकारक होगा। इस वजह से वो बात नहीं कर पा रहा है। अब दवाइयों के साथ साथ ये भी दुआ करनी होगी कि वो कुछ ऐसा फिर से न देख ले। 

इधर राहुल का इलाज चल ही रहा था कि पता नहीं कैसे किसी को राहुल के हालात और उसके सपने के बारे में पता चल गया। ये बात पूरे सोसायटी में जंगल की आग बन गई थी। फैलते फैलते जैसे ही ये बात मोहन के घरवालों को पता चली उन लोगों की तो हालत खराब हो गई। कोई भी मां या बाप अपने एकलौते बच्चे के बारे में ऐसे सुन कर डर ही जायेगा। गुड़िया के बारे में, नेहा की मौत, अजय की मौत सब कुछ सपने में देखा गया था जानने के बाद तो सबको डर के साथ साथ यकीन होने लगा कि सपना पूरा सच होगा और शायद मोहन भी....। मोहन के माता पिता ने उसका घर से निकलना बंद करवा दिया था। इधर राहुल की हालत खराब होती जा रही थी। वो अपने आप से बात करने लगा। अजीब हरकतें करने लगा। उसका दिमाग बिल्कुल अलग तरीके से व्यवहार कर रहा था। हम दोनो की तो जैसे दुनिया ही उजड़ रही थी। हमको तो डर लग रहा था कि कहीं हमारा राहुल भी तो...। शांति जी की आंखों में आंसू आ गए थे।

राहुल हॉस्पिटल से घर तो आ गया था लेकिन उस पर अब इलाज का ज्यादा असर नही हो रहा था हमे तो हमेशा डर लगा रहता कि उसको फिर से कोई सदमा न लग जाये। कहीं न कहीं हमको भी लगने लगा कि जो घटनाएं हुई उसमे गुड़िया का कोई रहस्य तो है ही, साथ ही कुछ तो और भी है जिसको साइंस मानता नहीं लेकिन कभी कभी कुछ तो ऐसा होता ही रहता है। हम सब किसी डर के साये में एक एक दिन गुजार रहे थे। 

इसी बीच सोसायटी के लोगों विशेषकर मोहन के परिवार वालों ने एक बड़े सिद्ध बाबा को समस्या के समाधान के लिए बुलाया जिससे वो सोसायटी पर आए इस बुरे समय से निकलने का कोई मार्ग बता सकें। बाबा रामभिभूति का बड़ा नाम था। वो बुरी ताकतों का पता वो जल्दी ही लगा लेते और उनका निराकरण भी करते थे। उनके सोसायटी में आने के लिए बड़ी व्यवस्था की गई थी। आजकल के बाबाओं के नाम के हिसाब से सबको लगा की वो बड़ी मसीडीज जैसी किसी गाड़ी से आएंगे और उनका गाड़ियों का काफिला बहुत बड़ा होगा। उनके मैनेजर, भक्त, सेवक सब साथ आएंगे। उनके रहने खाने की उत्तम व्यवस्था की गई थी साथ मे उनके साथ आने वाले लोगों की भी। किसी को कोई शिकायत न हो इसके लिए सोसायटी के सब परिवार अपना यथासंभव योगदान दे रहे थे। तय समय पर सबकी नजरें इन्तज़ार में गेट पर लगी थीं कि बड़ी गाड़ियों का काफिला आएगा। लेकिन तभी वहां एक पुराने जमाने की एम्बेसडर गाड़ी आकर रूकी। उसमे से बाबा जी अपने सिर्फ एक साथी के साथ उतरे। सभी हैरान थे की बाबा एम्बेसडर में वो भी सिर्फ एक व्यक्ति के साथ। इतनी तैयारियां देख बाबा जी समझ गए और मुस्काये। फिर वो अपने निर्धारित आसान की तरफ जाने लगे। उनका आसान ऊंचाई ओर लगाया गया था सामने लोगो के बैठने की व्यवस्था की गई थी। हर तरफ फूलों की व्यवस्था थी। खास तौर पर अरुल के फूल जिसको गुड़हल या hibiscus भी कहा जाता है को मंच पर रखा गया था।

बाबा को गेट आते ही कुछ अजीब सा महसूस हुआ था। पूरी कहानी सुनने के बाद बाबा ने राहुल को पास बुलाया और उसके सर पर हाथ रखा। लेकिन उनको उसमे किसी बुरी ताकत का अहसास नहीं हुआ। फिर उन्होंने मोहन को पास बुलाया और उससे पूछा आखिर वो गुड़िया कहाँ गई जो नेहा को मिली थी। मोहन ने बताया कि राहुल ने नेहा को उस गुड़िया से बचाने के लिए उसे बाहर गड्ढा करके दबा दिया था। तभी से वो बिल्कुल बदल सा गया है, मोहन राहुल का हाथ पकड़ कर रोने लगा। बाबा अपने साथी के साथ मोहन को लेकर उस तरफ गए जहां उस गुड़िया को राहुल ने दबाया था। सब लोग भी उनके पीछे हो लिए। बाबा के साथी रामदास ने उस खोद कर उस गुड़िया को बाहर निकाला वो बिल्कुल नई गुड़िया की तरह चमक रही थी। जैसे उसे किसी शोरूम से अभी अभी लाये हों। सब हैरान थे। बाबा उसको छूते ही एकदम से चौंक गए। उनको भी जैसे कुछ धुंधला सा दिखाई दिया था। तभी अचानक तेज हवा चलने लगी थी और बिना मौसम के ही अंधेरा सा होने लगा ये सब ठीक वैसा ही था जैसे उस दिन हुआ था जिस दिन नेहा उड़कर पेड़ पर लटक गई थी और राहुल ने उससे गुड़िया छीनबकर दबा दी थी। उन्होंने तत्काल उस गुड़िया को हनुमान जी के सिंदूर लगे कपड़े से बांध दिया और कुछ मंत्र पढ़कर गंगाजल उस गुड़िया पर छिड़क दिया। गुड़िया से अचानक दो परछाइयाँ बाहर निकल आई। एक बड़ी थी दूसरी छोटी। ऐसा लगा जैसे कि माँ बेटी हों। बाबा ने कुछ मंत्र पढ़कर उस परछाई पर कुछ चावल और काले तिल फैंके जो जैसे ही परछाई पर गिरे वो परछाई जैसे जम सी गईं। और उनके रोने के आवाजे आने लगी। एक आवाज बिल्कुल बच्ची की थी और एक आवाज किसी बड़े की। बाबा लगातार मन्त्र पढ़ते जा रहे थे। वो परछाई बार बार अपने आप को बचाने की आवाज लगा रहीं थी। आवाज इतनी करुणामय थी कि किसी का भी मन पिघल जाए। तभी तेज आवाज में बाबा ने पूछा कौन हो तुम और यहां क्यों आई हो। 

छोटी परछाई ने रोते हुए बोलना शुरू किया। मेरा नाम आशा है और ये मेरी माँ है। ये बात तब की है जब हम साया नही थे। हम शहर में एक नए बनते हुए कालोनी में रहते थे। हमारे स्कूल में एक नई लड़कीं आई थी जो हमारे ही मोहल्ले में रहती थी सोनम। सोनल एक 8 साल की लड़की जो उसके मम्मी पापा के साथ इस शहर आई थी। सोनल के पापा किसी दूसरे शहर में नौकरी किया करते थे। नई नौकरी की तलाश में जब वो इस शहर में आये तो अपनी पत्नी और अपनी एकलौती बेटी सोनल को भी ले आये। गांव में रहने के कारण सोनल को हिंदी नहीं आती थी। लेकिन वह धीरे-धीरे सब कुछ सीख गई।

क्रमशः


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अब तक के भाग में अपने पढ़ा कि राहुल का सपना उसकी आँखों के सामने सच हो जाता है और उसकी हालात खराब हो जाती है। सभी को राहुल और उसके सपने के बारे में जानकारी मिलती है तो सब बाबा रामभिभूति को समज़गा समाधान के लिए बुलाते हैं। गुड़िया से दो साये बाहर आते है। अब आगे....

शहर आने के बाद सोनल ने जल्दी ही सब सीख लिया था। वो मेरे ही स्कूल में आने लगी। सोनल और उसका परिवार किराए के घर मे रहता था। सोनल वैसे तो बहुत समझदार थी और उनकी इकलौती संतान थी फिर भी पता नहीं क्यों लेकिन वो अपने पापा से बहुत डरती थी। उसके मम्मी पापा उसे ज्यादा प्यार नहीं करते थे। शायद जैसा कि समाज में हर जगह होता है, बेटा नहीं होने की वजह से वो लोग उसे ज्यादा पसंद नहीं करते थे। ऊपर से गांव में मम्मी की मिलने वाले सर्वविदित ताने बेटी हैं वंश खत्म हो जाएगा से सोनम बहुत बार गुजरी थी। मम्मी भी शायद इसी वजह से उदास रहती थीं।

इसी तरह दो साल गुजर गए। एक दिन मकान मालिक ने घर खाली करने को बोला। क्योंकि उनके बच्चे बड़े हो रहे थे। वो उनकी शादी का सोच रहे थे तो इनको अब जरूरत थी। सोनम के मम्मी और पापा ने एक घर देखा, जो बहुत बड़ा तो था ही साथ मे बहुत बड़े एरिया में बना हुआ था। चारों साइड खाली जमीन। बीच में वह घर। इतने बड़े जमीन के टुकड़े पर वो घर छोटा ही लगता था। उसमें मकान मालिक नीचे रहते थे। ऊपर का फ्लोर सोनम के परिवार को किराए पर दे दिया। मकान मालिक की एक छोटी बेटी थी। सोनल को एक नई सहेली मिल गई थी वो बहुत खुश थी। लेकिन उसके पापा उसे ज्यादा खेलने नहीं देते थे। सोनल दूर से खाली जगह में बच्चों को खेलते हुए देखती रहती थी और उदास हो जाती। लेकिन जब भी उस बच्ची से खेलने का समय मिलता वो बहुत खुश हो जाती थी। सोनम के मम्मी पापा ज्यादा पैसे वाले नहीं थे इसलिए उसके पास ज्यादा खिलौने भी नहीं थे। 
उसकी एक और सहेली मैं थी, हम दोनो एक हो स्कूल में और एक ही क्लास में थे। हम दोनों एक ही साथ बैठते थे। दोनों में आपस में बहुत प्यार था। एक दिन जल्दी छुट्टी हुई तो मैं सोनम को अपने घर भी लेकर आई। जहां मम्मी ने मुझे और सोनम को बहुत प्यार से खाना खिलाया उससे बातें की। सोनम को इतना प्यार कभी नही मिला था। उसे अपनापन महसूस हुआ और वो मन ही मन सोचने लगी काश मैं इनकी बेटी होती। ऐसी सोच मन मे आना बहुत ही साधारण बात है। धीरे-धीरे दोनों बड़े होने लगी सोनल अक्सर हमारे घर आती थी। हम खूब खेलते थे। समय बीता हम आठवीं कक्षा में आ गए। सोनल बहुत खुश थी और वह अपनी नई किताबें, नोटबुक और टिफिन सेट कर के स्कूल के लिए निकली। हम दोनों बहुत खुश थे। मम्मी सोनम को बहुत पसंद मरती थी और सोनम भी किसी न किसी बहाने हमारे घर आती रहती थी।

एक दिन अचानक पता चला कि सोनम की मकान मालकिन की मृत्यु हो गई। सोनम बहुत रोयी। जैसे ही वो उस छोटी बच्ची को देखती रोने लगती कैसे वो अपनी माँ के बिना रहेगी। इतनी छोटी है। वो बच्ची हमेशा शायद अपनी माँ को ही ढूंढती थी। वो खेलना भूल गई थी। पहले जो रोने के चिल्लाने की आवाज आती थी वो बिल्कुल बन्द हो गई थी। अचानक एक दिन वो बच्ची को लेकर गांव चले गए। अब उस घर मे सोनम का परिवार ही बचा था। जो शाम को डरावना लगने लगा था। सोनम अब बहुत डर जाती थी। कई लोगों ने सोनम के पापा को बोला कि घर बदल लें क्योंकि वो लोग अकेले थे और वहां एक कि मौत भी हुई है और जिनका घर है वो भी चले गए हैं। लेकिन पापा ने ध्यान नही दिया और बोला ऐसा कुछ नही होता। और वो उसी घर में ही रहे।

एक दिन बहुत बारिश हो रही थी दो दिन बारिश हुई। हम स्कूल नहीं जा पाए। उस रात मैं और मम्मी घर पर अकेले थे कि अचानक हमारा घर टूट गया और मैं और मम्मी उसी मलबे में दब गए। मम्मी ने बहुत कोशिश की लेकिन हम बच नहीं पाए। मलबे के ढेर में हमारी सांस थमने लगी और कुछ ही पलों में हम दोनों की आत्मा उस शरीर से अलग हो गई। मुझे उस समय मम्मी और सोनम की ही याद आ रही थी। मेरी बस एक ही तो सहेली थी सोनम। 

कुछ दिन जब मैं स्कूल नहीं गई तो पहले से ही परेशान सोनम मुझे ढूंढती हुई हमारे घर आई। और वहां टूटा घर देखकर उसकी तो हालात खराब हो गई। सबसे पूछा लेकिन किसी को हमारे बारे में पता नहीं था। हमारे शव वहीं पड़े थे क्योंकि मेरा कोई था नहीं। इसलिए किसी ने ध्यान ही नहीं दिया कि उस गिरे घर मे कोई होगा। फिर एक दिन मलबे की खुदाई में हमारे शरीर को निकाला गया और फिर कहीं ले जाकर दबा दिया गया। हम दोनों उसी टूटे घर में थे। सोनम बार बार वहां आती थी शायद मैं उसे मिल जाऊं। जब मलबा उठाया जा रहा था तो मेरी ये गुड़िया सोनम को दिख गई और वो इसे आपने घर ले आई।

सोनम बिल्कुल अकेली अकेली हो गई थीं उसकी एकमात्र सहेली भी अब उसके साथ नहीं थी। स्कूल के बाद सोनम बिल्कुल अकेली गुमसुम सी रहने लगी। सोनम अक्सर हमारे घर को देखने आती थी उसे लगता था शायद हम कहीं मिल जायेंगे। एक दिन वो गुड़िया लेकर हमारे टूटे घर के मलबे पर बैठी हुई रो रही थी और मुझसे उसका यूं रोना देखा नही गया मैंने बहुत आवाज दी लेकिन उसने सुना ही नहीं। मां भी उसको यूं देखकर बहुत उदास सी हो जाती थी। उनको सोनम बहुत पसंद थीं। फिर हम दोनो ने फैसला किया कि.....

क्रमशः

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लेकिन कुछ दिनों पहले अचानक पता नहीं कैसे वो गुड़िया बाहर आ गई और नेहा ने उस गुड़िया को ले लिया। वो बहुत प्यारी बच्ची थी। उसको पता नहीं क्यों ये गुडिया बहुत पसंद थी। वो दोस्तों से भी दूर होने लगी। मुझे उसमे सोनल का अक्स दिखाई देने लगा था। यहां के सारे बच्चे मुझे बहुत पसंद आने लगे थे। मैं उनको खेलते देखती थी लेकिन नेहा पता नहीं क्यों अब अपने दोस्तों को छोड़ इसी गुड़िया में लगी रहती थी। लेकिन एक दिन मुझे आभास हुआ की उसका एक्सीडेंट होने वाला है, इसी लिए हमने उस दिन राहुल को वो सब दिखाया जिससे अगर हो सके तो नेहा को बचाया जा सके। लेकिन वो नहीं हो पाया। हमने राहुल को अजय और मोहन के बारे में भी दिखा दिया था। लेकिन अजय को भी नहीं बचाया जा सका। अब जब सबको ये पता है तो शायद मोहन को आप लोग बचा लोगे। लेकिन इन सबमें हमने कुछ किया ही नहीं हम तो सिर्फ अपनी मुक्ति के लिए भटक रहे हैं। शायद हमें मुक्ति मिलनी ही नहीं है।

आशा की कहानी सुनकर सब चौंक गए थे। मोहन के घरवाले तो बहुत ज्यादा डर गए। बाबा ने सबको ढांढस बंधाया। फिर बाबा बोले की हमे आशा और उसकी मां की मुक्ति के लिए पूजा करनी होगी। उनका तर्पण करना होगा। ताकि वो इस गुड़िया से अपना नाता तोड सकें और उनको मुक्ति मिले जो उनके अंतिम संस्कार ना होने और सोनल के प्रति उनके प्रेम के कारण भटक रही हैं। फिर मोहन की रक्षा के लिए कुछ उपाय किया जायेगा। 

बाबा ने उन आत्माओं को मुक्ति के लिए पूजा का आयोजन किया और मोहन और राहुल के लिए भी  एक अलग पूजा रखी गई। सबको उम्मीद होने लगी कि दोनो बच्चे ठीक से रहेंगे। बाबा ने हमें ये भी बताया की राहुल की तबियत खराब होने में किसी ऊपरी शक्ति का कोई हाथ नहीं। उसके मन पर बार बार लगी चोट के कारण ही ये सब प्रॉब्लम हुई है। इसको डाक्टर के इलाज की जरूरत है न कि किसी अन्य चीज की। ये समय के साथ साथ जल्दी ही ठीक हो जायेगा। जब तक राहुल ठीक न हो उसको इस शहर से दूर कहीं रहने के लिए भेज देने का सुझाव भी उन्होंने दिया। हम लोगों ने डाक्टर से सलाह की और उन्होंने भी यही सुझाव दिया। इसी वजह से गांव आ गए। और राहुल के पापा शहर में ही रह रहे हैं। वो घर भी उन्होंने बेच कर नई जगह घर ले लिया है। राहुल की तबियत में अब बहुत सुधार है। उस दिन बच्चे को देख उसके साथ खेलने की कोशिश कर रहा था। बस लेकिन गांव के लोग इसको पागल समझते हैं। कोई बच्चा इसके साथ खेलता भी नहीं है। 

कविता भी उधर आ गई थी उसके मन को भी ये सब सुन कर बहुत दुख हुआ। इधर मोनू राहुल के घर के बाहर से उसको देख रहा था, दोनो और दोनो बीच बीच में मुस्कुरा रहे थे। 

क्रमश:



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