ये जीवन है (भाग 22–23)

अब तक के भाग में अपने पढ़ा। रवि ऑफिस के पास ही किराए के मकान में रहने लगता है। कविता और रवि एक दूसरे का ध्यान रखते है। आखरी महीने में कविता मायके चली जाती है। दिवाली के दिन वो बहुत खुश थी और देर रात तक रवि से बात करती रही। अब आगे...

दीपावली के दिन देर रात तक कविता को नींद ही नहीं आ रही थी। वो काफी देर से सोई। अगले दिन छुट्टी थी इसलिए रवि देर से सोकर उठा। 10 बज गए थे। उसने कविता को फोन इसलिए नहीं किया कि देर से सोई थी तो सोई होगी। वो तैयार कविता के पास जाने के लिए तैयार हो गया था। चाय बनाने को रख दी थी। कविता की डेट में अभी 14 दिन का समय था रवि ने पहले ही ऑफिस से उस समय की छुट्टी ले रखी थी। तभी कविता का कॉल आया। उसकी आवाज बिल्कुल थकी हुई लग रही थी। जैसे रात भर सोई न हो या बहुत दर्द हो रहा हो। 

"हेलो रवि हमारा बेटा हुआ है" कविता ने बोला।

"चल झूठी, जादू थोड़े ना है जो हो गया।" रवि ने हंसते हुए कहा।

"सचमुच में, अभी थोड़ी देर पहले ही" कविता ने खुश होते हुए बताया।

"मतलब आज अप्रैल फूल है क्या? रात को एक बजे तक तो मेरे से बात करके सोई हो। अभी उठी होगी। ओह सपने में देखा होगा तुमने। इसलिए उल्लू बना रही हो।" रवि ने कहा।

"यकीन तो मुझे भी नहीं हो रहा" कविता ने बताया।

"चलो अब मजाक छोड़ो, चाय पीकर मैं निकलूंगा तुम्हारे पास आने के लिए। क्या खाओगी? लेता आऊंगा।" रवि ने कविता को प्यार से कहा।

"सच में रवि। यकीन नही हो रहा न, लो पापा से बात कर लो।" कविता ने फोन पापा को दे दिया।

पापा ने भी जब बताया तो रवि खुश हो गया। लेकिन उसको लग रहा था की अभी इतने दिन है तो कैसे। उसको यकीन नहीं हो रहा था। उसको लगा की कविता ने पापा से मिलकर बेवकूफ बनाने की योजना बनाई है। 

"अच्छा मिठाई लेते हुए हॉस्पिटल ही आना।" कविता ने रवि से कहा।

"अच्छा ले आऊंगा। खुद ही खाना है मिठाई तो वैसे ही बोल दो काजू कतली खानी है। इसमें बेकार में पागल क्यो बना रही हो चलो आता हूं। रवि ने कहा।

"सब ठीक है ना, हॉस्पिटल क्यो?" रवि ने चौंकते हुए पूछा।

"बस जल्दी आ जाओ" कविता ने कहा और फोन कट कर दिया।

रवि थोड़े टेंशन में आ गया था। वो जल्दी से हॉस्पिटल पहुंच गया।

वहां पहले से ही कविता के मम्मी पापा और उनके एक पड़ोसी आए हुए थे जिन्हें देख कर रवि अजीब लगा। जब पता चला कि कविता एडमिट है तो वो चौंक कि क्या हो गया। वो जल्दी से कविता के पास पहुंच गया वहां उसके बगल में एक बेबी लेटा हुआ था। जिसे देखकर रवि के आंखो में आंसू आ गए। वो बच्चा सबको बड़ी बड़ी आंखों से देख रहा था। पहले ही दिन सबको जान लेने की उत्सुकता थी या किसी की तलाश। कविता ने रवि को देखा तो उसकी आंखो में भी आंसू आ गए। 

"देखो रवि हमारा बेटा" कविता बोल नही पाई।

बिल्कुल दूधिया लाल रंग, बड़ी आंखें, दूध मे जैसे स्ट्रॉबेरी डाल दी गई हो, सुंदर फूलों सा नाजुक। पहले ही दिन हाथ पांव चला रहा था। नवंबर का महीना गुनगुनी ठंड। बहुत ही एहतियात से कम्बल में लिपटा हुआ अपना अंश। रवि ने उसको उठाना चाहा लेकिन कहीं चोट न लग जाए इसलिए उठाया नहीं। बच्चे को देख कर कविता में चेहरे पर खुशी की लहर थी जो शायद पहले कभी न रही हो, हज़ारो सपने थे। हज़ारों बातें जो रवि से करनी थी लेकिन सबके सामने कैसे। रवि उसके मन की बात समझ गया और वो कविता का हाथ हाथ में लेकर बैठ गया। उसको तो सुबह मजाक लग रहा था सब लेकिन सच में होगा सोचा नहीं था। सब उनको अकेला छोड़ कर बाहर आ गए।

"रात को बताया क्यो नहीं जब बात हो रही थी?" रवि ने नाराज होते हुए पूछा।

"क्या बताती जब कुछ हो ही नहीं रहा था तो।" कविता ने जवाब दिया।

"लेकिन जब हॉस्पिटल आई तब क्यो नहीं बताया? मुझे तुम्हारे साथ होना था न। ठीक तो हो तुम? बोलो।" रवि ने कहा।

बता ही नहीं पाई। मुझे क्या पता था क्या होने वाला है मुझे लगा नॉर्मल दर्द है। इसके लिए क्या बताती। यहां आए तो आने के पंद्रह बीस मिनट में ही ये आ गया। बिल्कुल पता ही नहीं चला कब क्या हो गया। अब ये सब लड़ाई बाद में पहले बताओ खुश हो न? कविता ने रवि की आंखें पोछते हुए पूछा।

हां, बहुत खुश हूं। बहुत ज्यादा। तुम बिल्कुल ठीक हो, बेबी ठीक है और इससे ज्यादा खुशी क्या होगी मम्मी जी। रवि ने छेड़ते हुए कहा।

"अच्छा जी पापा जी।" कविता ने कहा और दोनो हँस दिए।

रवि ने फोन करके घर पर भी बता दिया। सब कहने को तो खुश तो थे लेकिन हमे पहले क्यों नहीं बताया की शिकायत शुरू हो गई थी। रवि ने पूरी बात बता कर हॉस्पिटल का एड्रेस दे दिया लेकिन कविता दो दिन हॉस्पिटल में रही लेकिन कोई आया नहीं। रवि पूरे दिन उसके पास ही रहता था। ऑफिस से छुट्टी ले चुका था।  छह दिन बाद छठी की पूजा थी उसके बारे में रवि ने खुद फोन करके बताया था  लेकिन घर से कोई आया नहीं। रवि को पता चला कि सबको कहा जा रहा है कि उनको क्या पता कब हुआ बच्चा। हमें बताया ही नहीं था। सिर्फ इसलिए क्योंकि छठी पर कोई नहीं आया। एक और एक कारण ये भी कि बहू के ससुराल से किसी ने बुलाया नहीं। मतलब अपनी संतान की पहली संतान को देखने के लिए भी निमंत्रण चाहिए। इसी लिए न देखने कोई आया न छठी में कोई आया। सिर्फ छठी ही नहीं, एक महीने बाद जब कविता रवि के पास आ गई तो भी कोई नहीं आया। कविता को बहुत दुख था की उसकी नही लेकिन बच्चे से भी ....।

क्रमश:



23

अब तक के भाग में अपने पढ़ा। कविता एक सुंदर बेटे को जन्म देती है। रवि उसको देख कर बहुत ज्यादा खुश होता है। सब आते हैं लेकिन रवि के घर से कोई भी नहीं आता। अब आगे...

रवि और कविता ने अपने बेटे का नाम रोहित रखा, घर में सब मोनू बुलाने लगे। कविता को एक ऐसा जीता जागता खिलौना मिला था जिसके साथ वो पूरे दिन बिज़ी रहने लगी। एक बहाने के बाद दिसंबर की सर्दियों में वो वापस रवि के पास आ गई। रवि खुद ही उसको लेने गया। उस दिन वो बहुत खुश थी। रवि ही मोनू को गोद में लेकर पूरे रास्ते आया। वो भी आज खुश था। उसके बाद दोनो मिलकर मोनू का ख्याल रखते। शुरू में मोनू की एक आदत थी की वो रात भर सोता नहीं था। कविता और रवि बारी-बारी उसको संभाल लेते थे। रवि का सुबह ऑफिस भी होता था। मोनू जब तक तीन महीने का हुआ तो उसकी आदत ठीक होती गई। कविता रवि के परिवार के न आने की वजह से दुखी तो थी ही लेकिन आखिर 4 महीने बाद होली पर अपने मन के दुख को किनारे रख कर जब कविता रवि और उनका बेटा घर गए। लेकिन सब खुश तो थे ही लेकिन सुनने को मिला कि हमें तो किसी ने बताया ही नहीं कि बेटा हुआ है, रवि ने खुद बताया था। जबकि सब दूर दूर के रिश्तेदारों के बच्चों की छठी या हर फंक्शन में सब जाते थे। जबकि उसके 6 महीने बाद रवि की बहन का लड़का हुआ तो सब गए। रवि भी गया था। सब परिवार वाले वहां दो दिन रुक कर भी आए। घरवालों का  मानना था की कविता के घरवाले यहां खुद आकर बताते तभी बताना माना जायेगा। खैर इसका कुछ हो नहीं सकता था। रवि को इसका बहुत बुरा लगा लेकिन कुछ कहने का कोई खास मतलब था नहीं तो उसने कुछ कहा भी नहीं।  रवि और कविता भी एक दिन रुककर वापस आ गए। सब का व्यवहार ऐसा था मानो मेहमान आए हों और इस तरह से रहना उनको बिल्कुल पसंद नहीं आया। कभी-कभी रवि घर जाता रहा कविता भी जाती थी। कोई काम होने पर सब आ जाते थे। आखिर समय के साथ कुछ ठीक होता रहा या लगता रहा कि ठीक हो रहा है, पता नहीं। कभी-कभी दूरियां रिश्तों को बचा लेती हैं। शायद ये ही नियम यहां काम कर रहा था। मोनू के जन्मदिन पर सब आए। बहुत खुश थी कविता। सब रात भर मस्ती करते रहें मोनू तो बस इतने लोगों को एक साथ देख रहा था। वो घुटनों पर चल चल कर इधर से उधर जा रहा था। खड़े होने की कोशिश में बार बार गिर जाता। सब उसके करतबों का आनंद ले रहे थे।

ट्रेन में इन्हीं ख्यालों में डूबे हुए रवि को कब नींद आ गई पता ही नही चला। सुबह कविता ने उसको उठाया तो आंख खुली। अपने शहर पहुंचने में अभी काफी समय था। ट्रेन अब भी दो घंटे लेट थी और एक ऐसे स्टेशन पर खड़ी थी जहां उसका स्टैंड नहीं था। मोनू अभी तक उठा नहीं था। चाय आ गई थी दोनो ने चाय पी। ब्रेकफास्ट आने पर मोनू को उठाया और तीनों ने मिलकर ब्रेकफास्ट किया। ट्रेन तीन। घंटे की देरी से आखिर पहुंच ही गई। 

स्टेशन से घर पहुंचते हुए शाम होने लगी थी। शाम को रवि बाजार से कुछ सब्जियां और जरूरी सामान ले आया ताकि अगले दिन का काम चल सके बाकी सारा सामान अगले दिन कविता के साथ जाकर लाना था। आज कविता घर की सफाई में इतना बिज़ी थी कि बाहर जा पाने का कोई मतलब ही नहीं था। रात का खाना बाहर से मंगवाने की बात से आज मोनू बहुत ज्यादा खुश था। आखिर बहुत दिनो बाद उसका मनपसंद खाना मिलने वाला था। 

कहीं चले जाने पर बंद घर की क्या हालत होती है ये सब जानते हैं। इतनी धूल मिट्टी थी कि साफ सफाई करते करते रात हो गई। सब बहुत थक गए थे, खाना खाकर सफर की थकान और फिर काम की थकान के कारण बिस्तर पर लेटते ही सब सो गए। अगले दिन भी रवि ने छुट्टी ले रखी थी। ताकि सारे काम निपटा सके। अगले दिन सब काम को खत्म करके शाम को सब मार्केट निकल गए। अगले ऑफिस जानें की तैयारी भी करनी थी। अगले दिन से रवि का वही रूटीन शुरू हो गया था। 

कुछ दिनों के बाद एक दिन कविता ने कॉल करके रवि को जल्दी घर बुलाया जबकि आज तक कविता ने ऐसे कभी किया नहीं था। कहीं तबियत न खराब हो गई हो ये सोच कर रवि आज समय से पहले ही घर के लिए निकल गया था। फोन पर तो कविता की आवाज में कोई परेशानी नहीं लग रही थी लेकिन तब भी रवि का मन थोड़ा बैचेन था। कुछ ही समय में को घर पहुंच गया। उसने देखा घर में बहुत सारी सजावट हो रखी है फूल लगे हैं थोड़े बैलून भी। मोनू के खिलौनों को सजाया हुआ है। मोनू के बचपन को सुंदर सी फोटो भी लगी हुई है। शायद आजकल में ही फ्रेम करवाई गई है क्योंकि इससे पहले रवि ने इसको नही देखा था। लग रहा था जैसे आज मोनू का जन्मदिन हो, लेकिन वो तो हो नहीं सकता। 

"क्या हुआ ये सब क्या कर दिया घर का। आज बर्थडे तो है नहीं। किसी का बर्थडे प्लान किया है क्या आज?" रवि ने कविता से पूछा।

"बर्थडे है भी और नहीं भी लेकिन बर्थडे जैसा ही कुछ है।" कविता ने कोलड्रिंक का ग्लास रवि को देते हुए कहा। और रवि से बिल्कुल चिपक कर बैठ गई।

"अरे दूर हटो कोई देख लेगा।" रवि ने जैसे ही कहा दोनो जोर से हंस दिए। क्योंकि जब रवि ऐसे बैठता है तो कविता ये ही बात बोलती है। इधर बिना कुछ समझे मोनू भी जोर से हंसने लगा। 

"क्या हुआ? किसी फ्रेंड के बच्चे का जन्मदिन है क्या? रवि ने कविता का हाथ पकड़ कर पूछा

"अरे नहीं बस ऐसे ही मन किया।" कविता ने बोला।

उधर मोनू तो बहुत खुश था। उसको लग रहा था जैसे उसी का बर्थडे है आज। वो इधर उधर कर रहा था। लेकिन कविता की खुशी देख रवि को लग ही रहा था कविता कुछ छुपा रही है लेकिन क्या समझ नहीं आ रहा था। सारा काम करते हुए शाम होने लगी थी कविता ने बहुत सी मोमबत्तियां और दीए लगा रखे थे। आज रात के लिए खाना और खीर पहले से बना कर रखी हुई थी। रवि को पक्का यकीन था कि कोई स्पेशल प्लान है कविता का जो उसे नहीं बता रही है। लेकिन क्या? बहुत जोर डालने पर भी रवि नहीं समझ पाया। उसने सबके जन्मदिन दुबारा चेक किए वो पहली बार जब कविता से मिला था वो दिन भी आज का नहीं हो सकता था। लेकिन  शाम को कविता अकेले मार्केट गई और काफी सारी चॉकलेट, केक, और मिठाई लेकर आई। ये सब देख रवि को पक्का यकीन हो गया वो कुछ भूल रहा है लेकिन क्या? ये समझने में उसका दिमाग उलझा हुआ था। इसी चक्कर में उसके हाथ से पानी का ग्लास भी छूट गया। कविता रवि की हालत समझ गई थी लेकिन वो इसका मजा ले रही थी। पूछने पर बस ये ही कहती ऐसे ही आज मन किया कुछ अलग किया जाए।


क्रमश:

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