ये जीवन है पार्ट (7-9)

अब तक के भाग में अपने पढ़ा कि रवि पत्नी कविता और बेटे मोनू को लेकर बहुत सालों बाद गाँव आता है। वहां मोनू रात में जुगनू और सितारों से भरा आसमान देख कर उसमें खो जाता है। जोरदार आवाज होने पर कविता रवि के गले लग गई और अब आगे.....

'काश ऐसे ही मेरी बाहों में समाये रहो। बिजलियां गिरती रहे और मुझमे तू सिमटी रहे।' रवि ने बोला।

'चलो हटो जरा सा डर क्या गई तुम तो सपनों में खो गए।' कविता ने दूर होते हुए कहा।

'तुम तो मेरी हो ही इसमें दूर क्यों हटना। बिजली तुझे रोज गिरना चाहिए। उधर तू गिरी और इधर ये बिजली हमपर गिरी। अभी थोड़ी देर पहले तो हम याद आ रहे थे और अब हमसे ही .....' रवि में मुँह बनाते हुए बोला।

'चलो जाओ मैं नही डरती किसी से।' रवि की बात काटते हुए कविता बोली।

'अच्छा जी।' रवि ने कहा। तभी फिर से जोरदार आवाज हुई, और कविता फिर से रवि के गले लग गई। 

'कोई किसी से नहीं डरता लेकिन बात बात पर दुबक कर गले लग जाता है।' रवि ने फिर कहा।

'जाओ जाओ उड़ा लो मजाक। ये बारिश भी ऐसे हो रही है जैसे आज मार्च में ही सावन आ गया हो। लगता है मुझे डराने के लिए ही आ रही है ये आवाज।' कविता ने धीरे से बोला।

'जी नहीं! ये आवाज कह रही है तुम्हारी जगह मेरी बाहों में ही है, यहीं रहो। दूर जाने का ख्याल भी मत आने दो मन मे नहीं तो फिर से झटका देना पड़ेगा।' रवि ने कविता को कस कर पकड़ लिया। 

'चलो अब सो जाते हैं कल सुबह जल्दी उठना भी है। बहुत से काम है, और मोनू को लेकर भी जाना है।' कविता ने कहा।

'जैसी महारानी की आज्ञा। चलो चलते हैं।' रवि ने कहा। कविता अपने को रवि की बाहों से छुड़ाने लगी। 

'अरे बताया न दूर नहीं जाना है। मैं लेकर चलता हूँ तुमको' रवि ने कविता को उठा लिया और बिस्तर पर जोर से गिरा दिया। लेकिन कविता ने भी उसको जोर से पकड़ लिया था इस वजह से दोनों एक साथ गिर पड़े और हँसने लगे।

रवि और कविता थक गए थे तो बातें करते-करते जल्दी ही सो गए। आधी रात तक बारिश हुई और बारिश के कारण मौसम ठंडा हो गया था। सुबह सब जल्दी उठ गए थे। हर तरफ अलग ही नजारा था। आसमान साफ हो गया था लेकिन हर तरफ रात हुई बारिश का असर नजर आ रहा था। अभी सुबह के पांच ही बजे थे और मोनू भी उठा गया और वो जल्दी चलने की जिद्द करने लगा। रवि और कविता ने उसको दूध पिलाया और पीछे के बाग़ में ले गए। 

मार्च का महीना था। और बारिश के असर से ठंडक भी थी। वो सब बाग में पहुंचे तो कहीं कही पानी भरा था। मिट्टी की मनमोहक सौंधी खुशबू और उसके साथ में मिलकर फूलों की सुगंध मन को अजीब सा अहसास करवा रही थी। आम के पेड़ों नए पत्तों के साथ साथ फूल आने लगे थे जिनको मजर, मजरी या बौर कहते हैं। जिनकी खुशबू से पूरा बाग महका हुआ था। कुछ समय बाद इन्हीं फूलों में आम आ जाने थे। आम के काफी पेड़ थे जिनमें विभिन्न तरह के आम लगते थे। बाग में जाते ही मोनू भाग भाग कर सब देखने लगा

'इतना पानी पापा नल खुला रह गया क्या किसी का।' मोनू ने हर तरफ पानी देख कर पूछा।

'बेटा कल रात बहुत बारिश हुई थी ये पानी उसी से आया है।' रवि ने बताया।

सारे बाग की देखभाल गांव में रहने वाले चाचाजी करते थे। बाग की शुरुआत में ही कुछ पपीते के पेड़ थे लम्बे ऊंचे। उनपर बहुत सारे पपीते लगे थे उसमे से कुछ पीले होने लगे थे। एक मैना उसको बार बार चौंच मार कर काट रही थी और उसको से काट काट कर खा रही थी। रवि ने एक बांस की सहायता से पेड़ से दो पपीते तोड़ लिए जिसमें से एक पका हुआ था और एक कच्चा था।  

'ये कच्चा क्यों तोड़ दिया अब कौन खायेगा इसको।' कविता ने कहा।

'हम ही खाएंगे आधा तो कच्चा, इसमे नमक मिर्च और सरसों का तेल मिला कर और आधे की चटनी बना कर। रवि ने कहा।

'अच्छा बाबा तुम ही बनना इसको।' कविता ने मुहं बनाते हुए कहा। 

'पका हुआ तो मैं खा लूंगा' मोनू ने बड़ी मुश्किल से उसको उठाया। लेकिन वो उसके हाथ से गिर गया। उसपर मिट्टी लगने के कारण वो हाथ से फिसल रहा था। 

रवि ने दोनों पपीते उठा कर साइड में रख दिये। और वो सब आगे चले गए। 

सब जल्दी ही वहां पहुंचे जहां उन्होंने केले पकने के लिए रखे थे। आज शाम को उनको भी निकालना था। आगे जाने पर सामने बड़ा सा आम का पेड़ था। 

'बेटा ये देखो ये सारे मेंगो के पेड़।' रवि ने मोनू को आवाज दी। मोनू खुले जगह में इधर उधर भाग रहा था। कहीं कहीं भरे पानी मे छप छप करने में बहुत मज़ा आ रहा था उसको। रवि के आवाज देने पर वो भागता हुआ आ गया। 

'मैंगो, कहाँ हैं। दो न, मुझे खाने हैं।' मोनू ने बोलना शुरू कर दिया।

'ये रहा पेड़, ये मेंगो की नैचरल शॉप है लेकिन मेंगो अभी नहीं मिलेंगे।' कविता ने कहा।

'फिर किस बात की शॉप जब मेंगो हैं ही नहीं। मुझे अभी चाहिए।' मोनू फिर से शुरू हो गया था।

'बेटा जो शॉप होती है ना वो इन्हीं पेड़ों से मेंगो लेकर जाते हैं और हमको देते हैं। लेकिन अभी मेंगो आने का मौसम नही आया है।' कविता ने समझाया।

'लो फिर शुरू हो गई बारिश।' मोनू पेड़ के नीचे खड़ा था तभी किसी पक्षी के उड़ने से पत्तो पर से पानी की कुछ बूंदें मोनू के ऊपर गिरी। जिसको देख कर मोनू ने कहा।

'नहीं ये बारिश नहीं है ये पत्तो पर अटका हुआ पानी है।' कहते हुए रवि ने एक नीचे झुकी हुई डाल हिला दी। बहुत सारा पानी बूंदों के रूप में मोनू पर आ गिरा।

कविता ने एक और टहनी हिला दी जिससे सारा पानी रवि पर आ गया। फिर मोनू रवि की गोद मे चढ़ कर टहनी पकड़ कर हिलाने लगा और सब हंसने लगे। 

बाग में दो कटहल के पेड़ भी थे। जिनमे बहुत सारे छोटे छोटे कटहल आ रहे थे। उसमे से एक रवि ने तोड़ा और थोड़ा सा मोनू को ख़िलाया। इसका टेस्ट बिल्कुल अलग सा होता है। मोनू को वो ज्यादा पसंद नही आया लेकिन कविता को वो काफी अच्छा लगा। आगे कुछ अमरूद और इमली के पेड़ भी थे अमरूद का पेड़ काफी नीचा था जिस पर मोनू लटक गया और झूलने लगा। अमरूद पर भी फूल आये हुए थे और कुछ बहुत छोटे छोटे अमरूद भी आ गए थे। लेकिन ये बिल्कुल छोटे थे। वैसे तो ये कच्चे खाये जा सकते थे लेकिन रवि ने उनको नहीं तोड़ा क्योंकि अभी कटहल खाया था। वो सब आगे निकल गए।

क्रमश:


8

अब तक के भाग में अपने पढ़ा कि रवि पत्नी कविता और बेटे मोनू को लेकर बहुत सालों बाद गाँव आता है। रात को बारिश होने के बाद सुबह तीनो बाग में घूमने जाते हैं बाग में मिट्टी की खुशबू, पक्षियों के गीत, आम के फूलों की खुशबू में सब खो गए। वो सब बाग से खेतों की और जाने लगे। अब आगे....

'मम्मा आप जो शॉप कह रही थी वो तो बेकार है इसमें से कुछ मिला ही नहीं।' मोनू ने पूछा।

'बेटा वो सब नेचुरल होता है, वो बनना देखे थे न वैसे ही ये पेड़ पर मेंगो इन पेड़ पर लगेंगे। लेकिन सीजन के हिसाब से।' कविता ने कहा।

आगे बागीचे से निकल कर वो लोग खेतों की तरफ आ गए।

'इतना बड़ा ग्राउंड, अरे कितना बड़ा है ये। इसमे खेलने में बड़ा मजा आएगा।' खेत पहुंचते ही दूर से देख कर मोनू की आंखे खुली रह गईं।

मोनू इधर-उधर देखने लगा। दूर-दूर तक फैले खेत बीच-बीच में कहीं कहीं पेड़। खेतों की मुडेर दूर दर तक फैली हुई थी ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने बहुत बड़े कागज पर आड़ी तिरछी लाइने खींच दी हो। ज्यादातर खेतों में गेहूं की खेती हो रही थी, जो अब कुछ कुछ पकने लगे थे। गेहूं की बालियां जैसे धरती पर सोना बिखर गया हो। कुछ खेत पीले दिख रहे थे और कुछ हरे। 

'पापा ये क्या है कीड़े जैसा' मोनू से गेहूं की एक बाली को पकड़ कर पूछा।

बेटा ये गेहूं है ये पक जाएगा तो इसको पीस कर आंटा बनेगा, फिर उस आटे से मोनू के लिए रोटी बनेगी।' रवि  के बताया।

'इससे रोटी बनेगी लेकिन कैसे। क्या इसको भी बनाना की तरह पकाना पड़ेगा?' मोनू ने पूछा।

नही बेटा जब ये सारी फसल तैयार हो जाएगी तो इसको कट करेंगे, फिर इसमें से गेहूं निकाल लेंगे। देखो गेहूं ऐसा होता है। काटने के बाद इनमे से गेहूं अलग करेंगे फिर चक्की पर ले जाकर पिसवा लेंगे। मैं आपको अभी दिखाऊंगा कहाँ से पीसा जाता है गेहूं।' रवि ने बताया।

बीच-बीच में कुछ खेतों में सरसों की खेती भी हो रही थी। जिस के पीले फूल, मन को मोह लेने वाला दृश्य था। जिस तरफ सरसों की खेती हो रही थी वहां दूर-दूर तक पीले फूल दिखाई दे रहे थे ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने जमीन पर हल्दी हल्दी बिखेर दी हो। ये सब कुछ बहुत ही प्यारा लग रहा था। बहुत ही मनमोहक दृश्य था। आगे चलकर वो कच्ची सड़क खत्म हो गई और सबको खेतो की पतली सी मुडेर पर से चलकर जाना था। मोनू मो बड़ा मजा आ रहा था। कहीं कहीं कोई खेती नहीं हो रही थी तो मोनू उसमे कूदने लगता। कभी किसी पौधे को देखने लगता कभी खेत मे बैठे किसी पक्षी को। 

इस जगह के गांवों में खेत बहुत बड़े-बड़े नहीं थे। लोगों ने खतों को बांट बांट कर इतना छोटा कर दिया था कि अब ये किसी काम के नहीं रह गए थे। खेतों का साइज बहुत छोटा होने के कारण किसी एक चीज की खेती नहीं होती थी। कुछ लोगों के खेत अलग अलग जगह थे। चकबंदी कार्यक्रम यहां कभी पहुंचा ही नहीं। इस कारण यहां मशीनों का कोई उपयोग हो पाता था। लोग बैलों से खेत जोतते थे। खेतों के छोटे होते जाने के कारण ज्यादातर लोग अब गांव में नहीं रहते थे वह शहर चले गए थे। जो कुछ लोग यहां रहते थे वह थोड़ी बहुत खेती करके और अन्य कार्य करके जैसे तैसे अपना जीवन यापन करते थे। खेती पुराने तरीके से होती थी। और जितनी फसल पैदा होती उससे निर्वाह करना नामुमकिन ही था। लोग खेती के बाद बचे समय में मजदूरी के लिए शहर चले जाते थे। देखा जाए तो किसान जो कभी अन्नदाता था आज भारत में मजदूर हो गया था। जिनका अधिकतर टाइम शहरों में मजदूरी करते हुए बीतता था और फसल के समय यह लोग गांव में आते थे। किसान आजकल प्रवासी मजदूर था।

रवि कुछ खेत थोड़ी दूर पर थे वहां जाने का रास्ता पहले इन्हीं पगडंडियों से होकर जाता था लेकिन कुछ सालों पहले यहां एक ईंट का भट्टा लगा था जहां जाने के लिए रास्ता बनाया गया जिसके लिए एक कच्ची सड़क बना दी गई थी इसमे बीच बीच मे पानी भर गया था। कुछ खेत जो ईंट बनाने के लिए खोद दिए गए थे वो किसी तालाब की भांति पानी से भर गए थे।

'पापा वो क्या है। इतना ऊंचा।' भट्टी में से धुआं निकल रहा था जिसको देख मोनू ने पूछा।

ये ईंट बनाने की फैक्ट्री है  यहां मिट्टी से ईंट बनाई जाती है। वो देखो मशीन खड़ी है न, वो मिट्टी खोद रही है। जिसको पानी के साथ मिला कर फिर ईंट बनाई जाती है। 

एक चिमनी, उसमे से हल्का हल्का धुआं। चारो तरफ खेत। पास में खुदे हुए खेत। कुछ में खुदाई हो चुकी थी कुछ में हो रही थी। ईंट के भट्टे के चारो तरफ खेती का कोई निशान नहीं था। सिर्फ कच्ची ईंटों के ढेर। कुछ गढ्ढों में पानी भरने तालाब का आभास होने लगा था। कही मिट्टी खोदती जेसीबी मशीन। कहीं एक गमछा सर पर बांधे काम करते कुछ मजदूर, मिट्टी की कच्ची ईंट बनाती कुछ महिलाएं जो कच्ची ईंट बना कर उसको धूप में सूखने के लिए रख रही थी। उनके बच्चे पास में ही गढ्ढों में भरे पानी मे खेल रहे थे। दूर से देखने पर परफेक्ट क्लिक लग रहा था। इसी परफेक्ट पिच्चर के लिए तो फोटोग्राफर देश विदेश घूमते है। 

अपने खेतों की मिट्टी निकलवाना आमदनी का तात्कालिक स्रोत्र बन गया था। जिससे कुछ समय के लिए जीवन का निर्वाह हो सकता था। शायद कुछ लोगों का प्लान मिट्टी बेच कर, गहरे तालाब बनवा कर उसमें मछली पालन भी रहा हो। 
पास जाने पर भट्टी का ताप का पता चलने लगा था। इसी में पहले मजदूर ईंटें रखते हैं फिर पक जाने पर इनको निकालते हैं। इतनी गर्मी में काम करना सच मे बहुत दुष्कर होता होगा। रवि ने मोनू को मिट्टी से बनती ईंट को दिखाया, भट्टी भी दिखाई। अब वो लोग आगे अपने खेत की तरफ बढ़ गए। थोड़ी दूर चलने के बाद वह अपनी खेत पर पहुंच गए यह खेत उन्होंने किसी को खेती के लिए दे रखा था जो उस पर खेती करता था खेत के पास ही एक बहुत बड़ा पीपल का पेड़ था उसके नीचे एक कुआं था जो हमेशा से शायद सूखा हुआ ही था। रवि ने भी आज तक उसमे पानी नही देखा था। यहां बारिश बहुत हुआ करती थी इसलिए खेतों पर सिंचाई के लिए ट्यूबेल बहुत कम थे सारे सिंचाई बारिश से ही पूरी हो जाती थी। 

लेकिन पास ही नहर खुदाई हो रही थी। वो नहर आज से दस साल से खुद रही थी जिसको आठ साल पहले पूरा हो जाना था। उसकी खुदाई के लिए जमीन ले ली गई थी लेकिन कहीं कहीं काम शुरू हुआ और कहीं कहीं वो खेत अभी भी वैसे ही हैं। सरकारी काम जो ठहरा। शायद पेपरों में नहर खुद भी गई हो पानी आ भी गया हो और शायद नहर चोरी भी हो गई हो। कुछ भी हो सकता है यहां। 

'पापा ये आवाज कहाँ से आ रही है।' गाँव जो अब थोड़ा दूर रह गया था। दूर से पुक पुक पुक की आवाज लगातार आ रही थी को सुनकर मोनू ने पूछा।

'वो चक्की है उसी में गेहूं पीसते हैं और आंटा बनता है। कभी उधर जाएंगे तो देखेंगे। चलो अब घूम लिए अब घर चलते हैं' रवि ने कहा। और सब वापस आने लगे। 

क्रमशः


9

अब तक के भाग में अपने पढ़ा कि रवि पत्नी कविता और बेटे मोनू को लेकर बहुत सालों बाद गाँव आता है। वो सब बाग और खेतों में घूमते हैं और थोड़ी देर बाद वो सब घर की जाने लगे। अब आगे....

'आज तो तुम्हारे संदीप चाचा भी आ जाएंगे और कल तम्हारे गोपाल चाचा भी। तुम्हारे साथ खेलने के लिए गोलू, सौम्या, राधा आदित्य सब आ जाएंगे फिर खेलना तुम खूब।' रवि ने मोनू से कहा।

'अब आएगा न असली मज़ा' मोनू की आवाज में खनक आ गई।

रवि का एक चचेरा भाई भी आज गाँव आने वाले थे। सब एक ही शहर में रहते हैं तो कभी कभी मिलना हो ही जाता था लेकिन गांव में तो बहुत सालों बाद मिलने वाले हैं। बहुत साल पहले रवि के पिताजी और चाचाओं में बंटवारा हो गया था तो सब ने अपने अलग आंगन बना लिए हैं। बस एक कुलदेवी का कमरा सांझा है। जो आज भी मिट्टी का बना हुआ है। लगभग दो फीट चौड़ी मिट्टी की दीवारें जिसको भूसे को मिट्टी में मिलाकर, बनाया जाता है। ये घर रवि की याद से पहले का बना हुआ है क्योंकि उसने आज तक इस घर को ऐसे ही देखा है। बस ये याद है कि एक बार इसके ऊपर का छप्पड़ गिर गया था। तो इसके बीच मे एक बड़ा सा खम्बा लगाया गया था जो शायद किसी लंबे पूरे पेड़ को बीच से दो फाड़ करके बनाया जाता था। वो भी रवि के परदादा जी के समय का था, शायद 100 साल से ज्यादा पुराना रहा होगा इतने दिनों में भी न दीमक लगी थी और न ही कोई और क्षति हुई। लगभग 25 फिट का वो लकड़ी का खम्बा शायद किसी कंक्रीट के पिलर का पूर्वज ही होगा। उस समय भी उसको लगाने के लिए जो गड्ढा खोदा गया था तो खोदने वाले ने कम से कम 10-12 फिट का गढ्ढा किया था क्योंकि वो लम्बा चौड़ा आदमी इतना अंदर चला गया था कि उसके हाथ भी ऊपर नहीं आ रहे थे वो सीढ़ी लगा कर ऊपर आया था। फिर आस पास के जवान बूढ़े सब आ गए थे। कुछ लोगों को स्पेशल बुलवाया था जो इस काम को अक्सर करते थे। उस लकड़ी के खंभे नुमा पेड़ के हिस्से में ऊपर खाँचा बनाया हुआ था जिसपर छत को टिकाया जा सके। उसपर चारों साइड से बांस को बांध दिया गया जिससे कि उसको सीधा खड़ा करते समय नियंत्रित किया जा सके। बिना किसी मशीन के पुराने जमाने में ये सब कैसे किया जाता होगा ये इसकी एक झलक भर थी। उसको खड़ा करना, फिर मिट्टी से स्टेबल करना, फिर उसपर कच्ची छत टिकाकर बनाना। कुलदेवी का कमरा था ईश्वरीय कार्य मे सब अपना सहयोग देना चाहते थे। वो शाम उत्सव की तरह हो गई थी। बस सब काम होने के बाद चाय का दौर जरूर शुरू हुआ, काली निम्बू वाली चाय। 

रवि कविता और मोनू घर पहुंचे और कविता ने खाना बनाया। संदीप आज ही आ रहा था तो उसका खाना भी कविता ने ही बना दिया था। दूर का सफर इंसान कुछ करने लायक नहीं रहता। खाना खा कर रवि अपने नजदीकी चाचा जिनके यहां आज का न्योता था के आंगन की तरफ निकल गया और कविता को भी थोड़ी देर में आने के लिए बोल दिया। क्योंकि गांव में खाना बनाना, बाकी सब काम सब मिल कर ही करते हैं। वहां से निकलते हुए सोचा कि गांव का चक्कर लगा लिया जाए। आगे जाने पर रवि को वही लड़का दिखा जो पहले दिन उसके घर के पास आया था। उसका घर जो रवि के घर से थोड़ा ही दूर था। लेकिन बहुत जोर डालने पर याद आया पहले तो यहां कुछ हुआ ही नही करता था। रवि जानने की इच्छा से उस तरफ गया। वहीं उस लड़के की माँ भी दिख गई। रवि उनके घर की तरफ चलने लगा। 

'आइये बैठिये, इधर कैसे आना हुआ' उस लड़के की माँ ने रवि को आया देख कर बोला।'

'बस ऐसे इधर से चाचा जी के घर जा रहा था तो आपको देखा। उस दिन की माफी मांगने आ गया। उस दिन सब इतना जल्दी हुआ कि समझ नहीं आया कि कैसे क्या हो गया।' रवि ने बोला।

'इसमे कोई नई बात नहीं। ये तो नार्मल है। जब ईश्वर ने ये हलात पैदा कर दिए तो किसी से क्या शिकायत होगी।' उस लड़के की मां शांति जी ने कहा।

'लेकिन ऐसा क्या हुआ जो ये ऐसे' रवि बोलते बोलते रुक गया।

'अब आपको क्या बताऊँ।' शांति जी ने थोड़ा रिलेक्स होते हुए कहा और आगे बताना शुरू किया।

'हम शहर में अच्छी सोसायटी के फ्लैट में रहते थे। सारी सुविधाओ से लैस सोसायटी थी। राहुल के पापा भी अच्छी जॉब में थे सब बहुत अच्छा गुजर रहा था। सभी बच्चे सोसायटी के पार्क में बच्चे साथ खेलते थे जिनमें मेरा बेटा राहुल भी था। सब बच्चे 10 से 14 साल के बीच होंगे। इन सबकी एक दोस्त नेहा जो सबसे छोटी थी और सबसे प्यारी भी। वैसे तो वो सबकी चहेती थी लेकिन फिर भी राहुल से उसकी बहुत बनती थी। राहुल और नेहा के दूसरे के हमेशा साथ रहते थे, दोनो लगभग बराबर उम्र के थे। और नेहा अपने सारी चीजें सिर्फ राहुल से शेयर करती थी। बहुत बार जब नेहा की माँ को कहीं जाना होता था तो नेहा की मम्मी नेहा को हमारे यहां ही छोड़ जाती थी। नेहा मुझे माँ ही कहती थी, उसके मुहँ से माँ सुनकर बड़ा प्यारा फील होता था जैसे एक बेटी की कमी पूरी हो गई हो और नेहा थी ही इतनी प्यारी। 

समय अच्छा गुजर रहा था नेहा और राहुल बड़े हो रहे थे। हमारा घर नेहा के बिल्कुल सामने था। नेहा का दसवां जन्मदिन आने वाला था। और जन्मदिन के सुबह उसके घर की घंटी बजी। नेहा ने दरवाजा खोला तो दरवाजे पर कोई नहीं था उसने बाहर देखा तो वहां एक गिफ्ट बॉक्स रखा हुआ था, जो बहुत अच्छी तरह पैक था। जिसमे कोई नाम नहीं लिखा था बस लिखा था जन्मदिन मुबारक हो। हम भी उसी समय नेहा को बर्थडे विश करने पहुंचे थे। सबको लगा किसी ने सरप्राइज गिफ्ट दिया है। लेकिन किसने? ये पता लगाने के लिये उसकी मम्मी ने गिफ्ट पैक खोला। खुलते ही ऐसा लगा उसमें से कोई रोशनी निकली। लेकिन अगले पल कुछ नहीं था जैसे बिजली चमकी हो बस। बॉक्स में एक फ्रोज़न डॉल थी बहुत खूबसूरत मनमोहक नेहा तो उसको देखते ही बावली सी हो गई। आखिर बच्चे हो ही जाते है वो भी जब कुछ मनपसन्द वो भी बिना मांगे अचानक से मिल जाये। लेकिन सुबह से कुछ तो अजीब था। नेहा की आंखे अजीब सी लाल थी। पूछने पर उसकी मम्मी ने बताया कि रात को देर तक जग रही थी आज ये करेगी आज वो करेगी कि प्लानिंग कर रही थी पापा के साथ। शायद इसलिए नींद पूरी नहीं हुई है। नेहा उस डॉल को ले जाकर अलग खेलने लग गई। उसने आज राहुल के साथ खेलने से भी मना कर दिया था। शाम को बड़ी पार्टी हुई। सब बहुत खुश थे बच्चो ने खूब एन्जॉय किया। सब बहुत से गिफ्ट लाये थे। लेकिन नेहा को जैसे किसी चीज से कोई मतलब ही नहीं था। उसके लिए वो डॉल ही सब कुछ हो गई थी। बच्चे ऐसे ही करते है ये सोच कर सब ने मन को समझा लिया था।

क्रमशः


Comments

Popular posts from this blog

अरमानों पर पानी है 290

रिश्ते

खिलता नही हैं