रात गहरी
रात गहरी बहुत और गहरी हुई,
गम के बादल छटे और न सहरी हुई,
दिल के किस्से ख्यालों में अटके रहे,
गम की परछाई कुछ और गहरी हुई।
हाँ ख्यालात मेरे थे मदहोश से,
हाँ सवालात मेरे थे खामोश से
बस तेरी आरजू का, अफसाना था
बस ये हालात मेरे थे बेहोश से,
दिल के हालात बहके थे बहके रहे
स्वप्न टूटे व्यथा मन की गहरी हुई।
रात गहरी बहुत और गहरी हुई,
गम के बादल छटे और न सहरी हुई।
जो भी साथी बने, वो कहीं खो गए,
हमसफर जो भी थे, राह में सो गए,
मैं भी चलता रहा जिंदगी न थमी,
आंख से निकले आंसू, स्वप्न धो गए,
हर जगह मैं गया, लेके टूटा सा दिल,
स्वर्ग की सारी सत्ताएं बहरी हुईं,
रात गहरी बहुत और गहरी हुई,
गम के बादल छटे और न सहरी हुई।
वो बहुत खूब थे गुजरे तेरे जो दर,
न खबर थी हमे लागी किसकी नज़र,
कौन अपना था जो न गया तोड़ कर,
रात होते ही दामन मेरा छोड़कर।
गीत गायें भी क्या गुनगुनाएं भी क्या?
मौत की शायद अंतिम अंधेरी हुई।
रात गहरी बहुत और गहरी हुई,
गम के बादल छटे और न सहरी हुई।
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