हो तिमिर कितना भी गहरा

हो तिमिर कितना भी गहरा, आखिर भोर तो आनी ही है,
कितनी घनघोर घटाएं छायें, आखिर वो छंट जानी ही है।
कितने भी दीपक बुझ जाएं, आस नहीं तुम बुझने देना,
सुख दुख का ही नाम है जीवन, एक आनी एक जानी ही है।


नाव चलानी है ही हमको, चाहे बाढ़ या सिमटे पानी,
इस धारा के पार है मंजिल, खड़ा तू कैसे है हैरानी,
जीवन का मतलब है चलना, राह नहीं तो भी है डंटना,
वक़्त का पहिया चलना ही है, मंजिल तो आ जानी ही है।
हो तिमिर कितना भी गहरा, आखिर भोर तो आनी ही है।
कितनी घनघोर घटाएं छायें, आखिर वो छंट जानी ही है।


कर्मों का फल मिलके रहेगा, चाहे जितना जोर लगा ले,
जैसा किया वही पायेगा, चाहे जितना भी आजमा ले,
जो मिलना है यहीं मिलता है, स्वर्ग यहीं है नर्क यहीं,
सत्य अमर बस है दुनिया मे, मृत्यु झूठ को आनी ही है।
हो तिमिर कितना भी गहरा, आखिर भोर तो आनी ही है।
कितनी घनघोर घटाएं छायें, आखिर वो छंट जानी ही है।


जीवन तो बस वो ही जीता, हार नही जिसने है मानी,
जीवन के सुखों दुखों को, जो समझे बस बहता पानी,
जिसने आस की लौ लगाई, उसने सारी खुशियां पाईं
वक़्त सभी का आता ही है, होनी तो हो जानी ही है।
हो तिमिर कितना भी गहरा, आखिर भोर तो आनी ही है।
कितनी घनघोर घटाएं छायें, आखिर वो छंट जानी ही है।


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