दिलकश चाहत का सिला

इतना दिलकश, जो मेरी चाहत का सिला हो,
ए खुदा तू ही बता, फिर मुझे कैसा गिला हो।

हर वक़्त जो मेरी चाहत का, दम्भ भरा करते थे,
हम भी अपना जिनके, होने पर गुमान करते थे,
वो ही महफिल में, संग गैरों के खड़ा हो,
ए खुदा तू ही बता, फिर मुझे कैसा गिला हो।

हमने चाहा था जिसे, छू भी ना पाये कोई गम,
उसने ठाये हैं मेरे दिल पर कितने ही सितम,
उसी ने फिर मुझे वेवफा भी कहा हो।
ए खुदा तू ही बता, फिर मुझे कैसा गिला हो।

मैने जिसको कभी, भगवान बना कर पूजा,
मेरे ख्वाबो पे कभी, रंग चढ़ा ना दूजा,
उससे ही इश्क़ का, धोखा भी मिला हो
ए खुदा तू ही बता, फिर मुझे कैसा गिला हो।

आइना देखा तो तस्वीर उसी की उभरी,
वो मेरे ख्वाबो की ताबीर है बन कर गुजरी,
उसपर एक रंग भी न, मेरी चाहत का चढ़ा हो
ए खुदा तू ही बता, फिर मुझे कैसा गिला हो।

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