सत्ता
क्या हुआ जो तीर छोड़ते, नेता ये अंगारो से,
हिन्दू-मुस्लिम एक रहेंगे, कह दो सब गद्दारों से।
कह देने या ना कहने से माँ से प्यार नही घटता,
माँ को पूजे या झुक कर चूमे, मत तौलो तुम नारो से,
झूठे वादों से बहका कर के हर बार नही तुम जीतोगे,
झूठ लगे तो जाकर पुछो मौन, अटल, सब प्यारो से।
मन्दिर मस्जिद की बातों से, भूखों के पेट नही भरते,
भूख मिटाओ और बचाओ झूठे, गौरक्षक हत्यारों से।
मत भूलो हमने ही उस दिन, सत्ता को धूल चटा दी थी,
दूर किया हमको जब उसने, बुनियादी अधिकारो से।
जिसकी सत्ता मे सूरज भी, एक बार नही छुप पाता था,
उसकी सत्ता भी हमने मिटा दी, अहिंसा के नारों से।
अभिमानी सत्ताओ के आगे, हमने झुकना नही सिखा,
कुछ तो सबक लिया ही होता, शिवाजी की ललकारों से।
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