हसीन

तुम्हारी आंखे, तुम्हारी जुल्फें,
तुम्हारे लब या तुम्हरा चेहरा।
खुदा भी अब तक, समझ ना पाया,
हसीन सबसे, क्या है बनाया।
तुम्ही बता दो, मैं दिल को मेरे,
करार कैसे दिलाऊँ दिलबर।
मैं जो तुम्हारी, गली से गुजरा,
हैं बरसो बीते, ना लौट पाया।

बहुत सुहानी, है गुजरी रातें,
तुम्हारी यादों, के दायरे में।
तुम्ही से तो है, बहारे सजती,
तुम्ही हो फूलों के आईने मे।
तुम्हे मै देखूं, तुम्हे मैं चाहूँ,
या तुमको पूजूं, ना जान पाया।
मैं जो तुम्हारी, गली से गुजरा,
हैं बरसो बीते, ना लौट पाया।

तुम्हारी नजरों, के तीर सबके,
दिलों मे गहरे, उतर रहे हैं।
गजल सी तेरी हसीं मे दिलबर,
दीवाने बन हम बहक रहे है।
जमाने भर ने, कहानियों मे,
मुझे दीवना तेरा बताया।
मैं जो तुम्हारी, गली से गुजरा,
हैं बरसो बीते, ना लौट पाया।

बिना तुम्हारे हमारा जीवन,
बडा ही सूना गुजर रहा था।
ना कोई चाहत, ना कोई आहट,
ना दिल मे कोई उतर रहा था।
तुझे जो देखा, जमाने भर में,
तेरा ना कोई जवाब पाया।
मैं जो तुम्हारी, गली से गुजरा,
हैं बरसो बीते, ना लौट पाया।

 ©vishvnath
8447779510


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