मेरी हर साँस पर पहरा


मेरी हर साँस पर पहरा, मेरी हर आस पर पहरा।
भला ये कैसी दुनियां है, जहाँ हर बात पर पहरा।

मैं क्या पहनूं, क्या न पहनूं, मैं क्या बोलूं क्या ना बोलूं,
मैं कब हँस दूँ, हँसू कैसे, मैं क्या सोचूं, क्या न सोचूं,
मेरी हर चाह पर पहरा, यहां हर आह पर पहरा।
भला ये कैसी दुनियां है, जहाँ हर बात पर पहरा।।

खाने पर, और पीने पर, मेरे चलने पर और रूकने पर,
जगने पर और सोने पर, मेरे कुछ कर गुजरने पर,
यहां एहसास पर पहरा, लगा क्यों ख्वाब पर पहरा।
भला ये कैसी दुनियां है, जहाँ हर बात पर पहरा।।

भला ये कैसी दुनियां है, जहां हर गलती मेरी है,
नहीं उन नजरों पर बंधन, कहां कुछ हस्ती मेरी है,
मेरी हर प्यास पर पहरा, मेरे ज़ज्बात पर पहरा।
भला ये कैसी दुनियां है, जहाँ हर बात पर पहरा।।

मेरी हर एक कहानी पर, बचपन पर जवानी पर,
मुझे ही दोष देना है, उसे अपनी हैवानी पर,
मै हूँ नन्ही, मगर मिलता, मुझे हर घाव है गहरा।
भला ये कैसी दुनियां है, जहाँ हर बात पर पहरा।।

मेरी हर साँस पर पहरा, मेरी हर आस पर पहरा।
भला ये कैसी दुनियां है, जहाँ हर बात पर पहरा।

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