भारत और नदियों की दुर्दशा

निर्मल गंगा एक ऐसा स्वप्न है जिसके लिए भागीरथ जैसा तप जरूरी है और आज कोई कितना भी इनकार करे लेकिन सब "गंगा मईया" सिर्फ राजनितिक स्वार्थ के लिए ही बोलते हैं, मेरा यह कथन किसी पार्टी या किसी सरकार के पक्ष या विपक्ष में नहीं है। मैली नदियां स्वार्थ सिद्धि की ऐसी कामधेनू बन गई है कि जिसे कभी कोई स्वच्छ नहीं करना चाहेगा क्योंकि कोई सोने का अंडा देने वाले मुर्गी की बिरयानी नही बनाई जाती।

सत्य मानिये तो आज तक नदियों की सफाई के नाम पर जितना अपार धन खर्च क्या गया है उसमे संपूर्ण गंगा को 2-4 बार दुबारा खुदवाया जा सकता था। कोई ये कहे कि सिर्फ 2 वर्ष में गंगा-यमुना या कोई नदी साफ होगी तो वर्तमान में यह असंभव है, अभी तो रिपोर्ट आने में ही सालों लगते हैं। उसके लिए इच्छा शक्ति चाहिए, वोट का मोह त्यागना होगा, कुर्सी का मोह छोड़ कर निर्णय लेने होंगे। जो हिम्मत न पिछली सरकारों में थी न इस सरकार में दिखती है।

जैसे ही किसी भी नदी को साफ की बात आती है सब संस्थाऐं नदियों की गंदगी के मुद्दे को धार्मिक रंग देने लगती है ताकि लोग इसको लेकर उदासीन हो जाए। इसके लिए सब का पहला वाक्य है कि नदियों में फेंके जाने वाले पूजन सामग्री को रोका जाये और कोई इसके खिलाफ नही लेकिन यह अंतिम कार्य भी हो सकता है क्योंकि पूजन सामग्री में 50-70% से अधिक हिस्सा फूलों का है और 90% से ज्यादा जैविक वस्तुऐं हैं जो यदि पानी का प्रवाह हो तो नदी स्वयं इनको मिट्टी में बदल देती है। जो उत्तम प्रकार की उपजाऊ मिट्टी होती है। यह बात 5-6 क्लास में ही पढ़ाई जाती है। इसी कारण सुंदरवन, गंगा ब्रह्मपुत्र का डेल्टा पृथ्वी पर सबसे अधिक उपजाऊ भूमि है। कही यह हमारे हजारों सालों से गंगा और अन्य नदियों में बहाये गए पूजन सामग्री और जैविक पदार्थों के कारण तो नही जिसे हम आज प्रदूषक बता रहे हैं।

सही प्रकार से सोचा जाये तो इन नदियों के मृतप्राय होने के कुछ मुख्य कारण है...

1.
नदियों में बहाया जाने वाला औद्योगिक एवं सीवेज अवशेष। जिसको बड़े आराम से नियंत्रित किया जा सकता है। लेकिन कोई सरकार इसको करना नही चाहती क्योकि यह मुद्दा मिलने वाले वोट, पार्टी फंड, और धनवान लोगों के कारखानों से जुड़ा है और कोई इनको नाराज नही करना चाहता। सभी कारखानों से होने वाले आर्थिक फायदों को त्याग देने की इच्छाशक्ति किसी के पास नहीं चाहे देश का कितना भी नुकसान क्यूँ न हो। न्यायालय द्वारा ऐसे कारखाने बन्द कर देने और सीवेज पानी को साफ करने के कई आदेशों बाद भी किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि सब राजनितिक शह पर होता है।
इसलिए पूजा का सामान पहला टार्गेट है ताकि चर्चा ही खत्म हो जाये।

2.
नदियों की बंधन दूसरा कारण है।
यह बंधन बांध है। तटबंध हैं शहरों की सीमाऐं हैं। एक समय था जब नदियाें को दोनों ओर विशाल बाढ़ क्षेत्र होता था। जब बाढ़ आती तो पानी बहुत बड़े क्षेत्र में फैलकर भूमि को उपजाऊ बनाता था। नदियों के साथ आने वाली गाद जो मूलतः नदियों में बहने वाली जैविक वस्तुओं की देन होती थी, कृषि को नया जीवन प्रदान करती थी। हमारे देश के कृषि प्रधान होने में इसका भी बहुत सहयोग रहा।

इसके बाद हमने नदियों का बहुआयामी अतिक्रमण शुरू किया नदियों के प्रवाह का, नदियों के जल का, उसको अशुद्ध करने का, उसके प्रवाह क्षेत्र का, उसके बाढ़ क्षेत्र का अतिक्रमण। इसमे से कुछ अति आवशयक थे तो कुछ सिर्फ लालच के कारण हुए।
बाढ़ को रोकने के लिए बनाये तटबंध मानव विकास के लिए जरूरी कदम था लेकिन इस कदम के अंधाधुंध प्रयोग ने नदियों के अस्तित्व को नाले में बदलने का कार्य किया। नदियों में बाढ़ के साथ आने वाली गाद जो पहले नदी बहुत बड़े भूभाग पर फैलाती थी उसे हमने सीमित क्षेत्र में बांध दिया जिससे नदियों के जलवहन की क्षमता समाप्त हो गई। आज नदियों की गहराई जहां तटबंध हैं काफी कम हो गई है और बाढ़ आने पर तटबंध टूटना और नदियों को मार्ग बदलना जैसे घटनायें होना शुरू हो गई है और भयंकर बाढ़ और जल संकट होता रहता है। हमने तटबंध बनाये तो प्रतिवर्ष गाद निकालने की व्यवस्था करनी होगी जिससे नदियां मैदान न बन जायें। इससे नदियों में जल की कमी नही होगी, गर्मियों में नदियों में पानी रहे तो हम जल संकट का सामना कर सकेंगे।

3.
इसी प्रकार बांध बनाकर हमने नदियों के प्रकृतिक प्रवाह को रोका। यह भले ही आवश्यक रहा हो लेकिन नदियों की रक्षा के लिए, नदियों को नालों में परिवर्तित होने से बचाने के लिए एक मिनिमम नियमित प्रवाह का होना आवश्यक है।

हम आज तक बाढ़ को आपदा मानते रहे जबकि दूसरे नजरिये से देखा जाये तो अतिवर्षा का उपयोग जल संकट से बचने में कारगर रूप से किया जा सकता है।

नेताओ के बयानों से लगता है  कि सिर्फ समस्या ही समस्या है तो ऐसा नहीं है समाधान भी यहीं है।

1. देश में लगभग सभी नदियों साल में एक समय लबालव पानी होता है जो बहकर सागर में चला जाता है। हमे उस पानी को नदी के तटबंध के पार नदी के साथ-साथ विशाल झील बनाकर सुरक्षित करना होगा. इन झीलों/तलाबों में पानी छोटी नहरों द्वारा पहुचाया जाये। इन नहरों पर फाटक लगाये जायें ताकि झील में नियंत्रित पानी पहुंचे। इस तरह हम सिर्फ कुछ ही नदियों से अथाह पानी सुरक्षित कर लेंगे और भूमिगत जलस्तर भी बढ़ेगा।

2. सभी नदियों को विशाल नहरों से जोड़कर हम नहरो में भी काफी पानी रोक सकते है और देश के सूखे इलाकों में पानी पहुँचा सकते हैं। साथ ही इन नहरों का प्रयोग जलयातायात में कर के सड़क और रेलवे का भार कम कर सकते हैं इन सभी नहरों पर भी फाटक लगाकर इनका पानी नियंत्रित किया जा सकता है, जिससे यातायात और सूखे की स्थिति के अनुसार जल प्रयोग किया जा सके।

मानसून में हर वर्ष इतना पानी तो जरूर बरसता है कि भारत की पूरे वर्ष की सभी जरूरत पूरी हो सके। जरूरत सिर्फ लालसा छोड़ इच्छा शक्ति से काम करने की है।

Comments

  1. Bahut khoob vishu bhai.
    Keep it up.

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  2. क्या बात है यार तुम तो बहुत बड़े लेखक बन गये। लेकिन जो भी लिखे हो दिल को छू लेने वाली बात लिखे हो।

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  3. क्या बात है यार तुम तो बहुत बड़े लेखक बन गये। लेकिन जो भी लिखे हो दिल को छू लेने वाली बात लिखे हो।

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