ठान लो तो जीत है

जिन्दगी की बस यही तो, एक सरल सी रीत है,
मान लो तो हार है और ठान लो तो जीत है।।
कदमों में है, क्या समंदर, क्या शिखर, क्या आसमा,
तेरी हद से कुछ नहीं, बाहर मेरे मन मीत है

तू क्यूं हिम्मत हार बैठा, है भले दुष्वार ये,
हर तरफ मुश्किल बड़ी, है कहां इनकार ये,
जिन्दगी है नाम इसका, ये तो बदले हर घड़ी,
कुछ मुकद्दर से नही, बस कर्म से साकार ये।
हो भले ही प्यास उच्चतम, शुष्क सब संगीत है
मान लो तो हार है और ठान लो तो जीत है।।

खो गई मंजिल भले ही, वक़्त के इस धार मे,
है नही मिलता सभी को, ये जहां उपहार में,
जिसने उठ कर तोड़ डाले, है सभी बन्धन सफर के,
उसके कदमो में झुके सब, जीत छुपी हर हार में।
छा गया घनघोर तम पर, हाथ में एक दीप है,
मान लो तो हार है और ठान लो तो जीत है।।

कैसे छूटे राह वो जो, मंजिलो पर जा रही,
मंजिलो से बस हवाए, महकी-बहकी आ रही,
हो भले ही दूर लेकिन, रुक मै जाऊँ भी तो कैसे,
मुझको पा लो बस यही, कह मंजिले बुला रही,
सारा जग हो जाये रुस्वा, या टूटी सारी प्रीत है,
मान लो तो हार है और ठान लो तो जीत है।।

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