रंगत तेरी सूरत तेरी, कितनी भी अनमोल सही


रंगत तेरी सूरत तेरी, कितनी भी अनमोल सही,
मेरे इश्क के आगे लेकिन, इसका कोई मोल नहीं।
जब तक न छुआ हो भँवरें ने, फूलों पर है रंगत कब आई?
परवाना हो कुर्बान न जब तक, शमा का कुछ मोल नहीं।

जो भी कुछ था तेरा मेरा, उसको अपना कर लें आ,
जीवन के इस इन्द्रधनुष में, रंग सुनहरे भर लें आ।
जग से क्या लेना देना जब, मन से सब मंजूर हमें,
मिटा के सब दिवार "मैं" की, प्रेम अमर ये कर लें आ।
रूप का तेरे, जग में मेरे, इश्क बिना कोई मोल नहीं
सब कुछ बिकता जग में लेकिन, बस मिलता बेमोल यही।
रंगत तेरी सूरत तेरी, कितनी भी अनमोल सही।
मेरे इश्क के आगे लेकिन, इसका कोई मोल नहीं।


जीवन है अनमोल प्रिये ये, रूस्वा तन्हा (तन्हा-तन्हा) क्या जीना,
सब कुछ मिटा कर ही तो, रंगत लाती है हिना।
युग युग से जग ने दोहरायी, प्रेम कथा दिवानों की,
साथ में हो जब जाम नयन के, मधुशाला जाकर क्या पीना।
...तो आऔ प्रिये खत्म करें ये, झगड़ा तेरा मेरा का....
चाहे जमीं हो चाहे गगन हो, इनका ही बस जलवा है
तेरी सीरत मेरी उल्फत, सबसे है अनमोल यही,
सादगी तेरी सबसे बड़ी है लेकिन, नेमत दुनियाँ में।
इसके आगे जग झूठा  है, रब का भी है मोल नही।

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