हँसती नजर

नजर हँसते हुए, फूलों में तू ही आ रही है।
तेरी खुशबू ही, बागों को, यूं महका रही है।
काफ़िर ना मुझे समझो, जहांन वालो यूं ही तुम,
है मय़खाना, वो नजरों से, मुझे बहका रही है।

वो सावन का खिला गुलशन, है महकाती हवाएं
उसी की जुल्फों में बंधक ये बिजली ये घटायें,
वही मस्ती में जुल्फें बस घनी, बिखरा रही है,
है मय़खाना, वो नजरों से, मुझे बहका रही है।

खुला आंचल यूं,  सरसों ने हो ली अंगराई.
उसी की इक हँसी से, मस्ती फाल्गुन में है छाई,
वही है जो, हमेशा दिल को, मेरे भा रही है,
है मय़खाना, वो नजरों से, मुझे बहका रही है।

नजर कातिल, असर कातिल, है बहका हर दीवाना,
उसी की  छाँह, पड़ने से खिला, दिल का विराना,
वही एक बस छटा बन कर, जगत पर छा रही है,
है मयखाना, वो नजरों से , मुझे बहका रही है।

©"vishu"

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