मरता लोकतंत्र
यह नया भारत है, हमारा नया प्यारा भारत। जो लोग सहिष्णुता पर लम्बे लम्बे भाषण भोक रहे थे कहां हैं वो जो सहिष्णुता को हिन्दू मुस्लिम से जोड़कर देख रहे थे, कहां है वो जिनको सहिष्णुता कम होने वाले बयान देशद्रोह लग रहे थे। क्या लोकतंत्र में सरकार से सवाल करना देशद्रोह है। हम क्यों समाज को टुकड़ों में बाँटने में जुटे हैं, हम ये क्यों नहीं समझ रहे की किसी का भी किसी भी नेता का किसी धर्म को समर्थन देना सिर्फ उसकी अपनी स्वार्थ सिद्धि है; वो न किसी धर्म का हितैषी है, न समाज का, न ही देश का हितैषी। उसको सिर्फ अपनी कुर्सी से मतलब है। इसलिए आओ लोकतंत्र बचाओ, समाज बचाओ, घर बचाओ, खुद को बचाओ, और सबसे जरूरी देश बचाओ।
नेताओं द्वारा झूठे भाषण देकर भूल जाना एक प्राचीन चलन है लेकिन इसमे नया अध्याय ये जुड़ा है कि अब साफ साफ बोल दो ये किसने बोला, यह तो सिर्फ भाषण को चटपटा करने के लिए बोला गया, अरे भाई चटपटा खाना होगा तो गली के बाहर के गोलगप्पे बाले से पैसे देकर खा लेंगे, चटपटा सुनना होगा तो फिल्मो, नाटको, सोशल साईट की कमी नही है। तुम देश चलाने के लिए वोट मांगने आये हो, कोई सामान बेचने नही, तुमसे ये उम्मीद नही की चटपटा बेचो। तुमसे ये उम्मीद है कि जो बोलो इतना नाप तौल कर बोलो कि कोई सवाल उठाये तो तुम्हारे पास एक जवाब हो, शुद्ध धरातल पर खड़ा जवाब। तुमको ये छूट नही मिल सकती की आज का बोल कर भूल जाओ, और ये छूट पाने का प्रयास भी राजधर्म के विरूद्ध है।
आज के समय का नया हथियार सोशल मीडिया और मीडिया बना है। सबके अपनी फेसबुकिया और ट्वीट्री सेना है जो किसी को भी ट्रोल करवा सकते है। अब तो सरकार का नया हथियार समाचार चैनल पर बैन लगाना भी है और मजे की बात यह है की दिखायी रिपोर्ट का विशलेषन कोई कोर्ट या कोई स्वायत संस्था नही कर रही बल्कि कुछ अफसर और मंत्री कर रहे हैं और उनकी तटस्थ निष्ठा पर सवाल भर उठाना ही देशद्रोह का परिचायक बना दिया गया है। देश पर हमला हो तो उनको सबक सिखाना हमारा अधिकार है और इस कार्य में सरकार का साथ देना फर्ज। मगर इस हमले की वजह हमारी ही कोई कमजोरी तो नही ये सवाल देशद्रोह कैसे।
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