मेरा बचपन (e)

रंग-रंगीला, भोला-भाला,
कितना प्यारा-प्यारा बचपन।
खो न जाए बस डर रहता,
मेरा प्यारा-प्यारा बचपन।

कितने सारे खेल-खिलोने,
कितनी सारी मेल-लड़ाई,
कभी-कभी घर मे हंगामा,
कभी हुई है खूब पिटाई।
इतनी मीठी-मीठी यादों से,
लगता न्यारा-न्यारा बचपन।
खो न जाए बस डर रहता,
मेरा प्यारा-प्यारा बचपन।

ख़ूब खेलते घर आंगन में,
और टूटते घर के बर्तन,
शोर-शराबा खूब मचाते,
छुटकी, मुन्ने को करते तंग।
मां की गोद मे सर रख कर के,
गुजरा प्यारा-प्यारा बचपन।
खो न जाए बस डर रहता,
मेरा प्यारा-प्यारा बचपन।

कुछ तो है जो छूट रहा है,
दिल मे कुछ-कुछ टूट रहा है,
शोर-शराबा, खेल-खिलोने,
मुझसे कोई लूट रहा है,
वक़्त जरा तूँ सांस तो ले,
थम तो जरा ओ आते यौवन।
खो न जाए बस डर रहता,
मेरा प्यारा प्यारा बचपन।


ebook publish  अभिव्यक्ति सांझा काव्य संग्रह
27 जून, 2019
साहित्य अंकुर नोएडा, 16 जुलाई, 2019 के अंक में प्रकाशित

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