विरह

तुम गीत कोई कह देते,
मेरे स्वपनों में आकर,
तो प्रेम मेरा और ये,
योग सफल हो जाता।
तुम झूठ ही कहते लेकिन,
मुझको वरदान सा होता,
तेरे मेरे मिलने का ये,
संयोग सफल हो जाता।


कितनी बीती रातों से,
है नींद नही आंखों में,
तेरी खुशबू अब तक है,
मेरी थमती सांसो में,
कल खत फिर तेरे देखे,
फिर भीग गए वो सारे।
दिल इतना रोया है कि,
बह जाए सागर सारे।
सूखी कलियों से आती,
अब तक खुशबू है तेरी,
तू सीने से लग जाती,
दुनिया सज जाती मेरी,
तू साथ जो होता मेरे,
संताप विफल हो जाता।
गुजर रही विरह में,
मिलन सकल हो जाता।


है धूप बहुत, छाया क्या,
जीवन का ताप हरेगी,
तेरी जुल्फों की यादें फिर,
मन को बेताब करेगी।
कोई साथ नही तन्हा अब,
है दूर बहुत ही जाना।
है रूठ गए साथी सब,
कोई मंजिल है न ठिकाना।
बिन तेरे इस दुनिया का,
मैं क्या अरमान करूँगा।
तू सारी खुशियां पाये,
बस ये पैगाम कहूंगा
हर हाल में हम जी लेते,
पी जहर अमर हो जाता।
गुजर रही विरह में,
मिलन सकल हो जाता।

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