भुलाने की हद

तुमने भुलाने की,
हद भी लज़ा दी,
हम क्या मुड़े तूने,
महफ़िल सजा दी।

कितनी ही मंजिल,
हम साथ तेरे
तुम जो थके,
छांव बनकर खड़े थे।
नए रास्ते, और,
नई मंजिलों ने
बाहें फैला कर,
हमको सदा दी।
तुमने भुलाने की,
हद भी लज़ा दी,
हम बस मुड़े तूने,
महफ़िल सजा दी।

मेरी इस कहानी सी न,
कोई हो कहानी,
दुआ कभी रूठे न,
कोई जिंदगानी,
कितना ही टूटा,
गया कितना लूटा,
तेरी आरजू ने,
क्या क्या सज़ा दी।
तुमने भुलाने की,
हद भी लज़ा दी,
हम बस मुड़े तूने,
महफ़िल सजा दी।

सबने कहा था,
मोहब्बत है धोखा,
ख्यालो में खोने से,
सबने था रोका,
दिल ने तो समझा,
है झूठी कहानी,
मिल ही गई है,
सजा इस खता की,
तुमने भुलाने की,
हद भी लज़ा दी,
हम बस मुड़े तूने,
महफ़िल सजा दी।

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