आस जगाना छोड़ो (e)

तुम मिल जाओ, स्वप्नों में, या आना जाना छोड़ो।
मन के सागर में भीषण, तूफान उठाना छोड़ो।
मुश्किल बड़ा समझाना, इस मन को अब बहलाना,
तुम आओ या न आओ, यूं आस जगाना छोड़ो,
मन के सागर में भीषण, तूफान उठाना छोड़ो।


जो लिख दूं मैं शब्दों में, कोई पीर नहीं ये छोटी,
सुख में रोती थीं आंखें, अब दुख में नहीं हैं रोती,
मन आस लगा कर लूटे, घट प्यास जगा कर टूटे,
अब तो ख्वाबो में आ आकर, दिल को तड़पना छोड़ो,
मन के सागर में भीषण, तूफान उठाना छोड़ो।


प्रदीप्त हुए मन के सब, आसो की लाज बचाते,
कुछ पल को आते लेकिन, है अंत समय, तुम आते,
कब से वीरानी खिड़की, है आज खुली तो लेकिन,
तुम हो जो नहीं तो छत पर, ये दीप जलाना छोड़ो
मन के सागर में भीषण, तूफान उठाना छोड़ो।


हाथों में तेरे ये मेहंदी, जिसकी भी सजी, खुश रहना,
हक मेरा नहीं तुझसे अब, कोई भी शिकायत कहना,
तेरी सिंदूरी बिंदिया, बस दीप्त रहे जन्मों तक,
लेकिन मिलते ही नज़रें, तुम नैन झुकाना छोड़ो,
मन के सागर में भीषण, तूफान उठाना छोड़ो।

कुछ ऐसा हो कि जीवन, गुजरे ये राह में तेरी,
कुछ ऐसा हो कि जीवन, भटके ये राह में तेरी,
कुछ ऐसा हो कि सारे, स्वप्नों का सार बनो तुम,
जो ये भी न हो तो मन में, ये प्यास जगाना छोड़ो।
मन के सागर में भीषण, तूफान उठाना छोड़ो।

छन कर आती आंखों पर, थी चांदनी इन जुल्फों से,
बस खुशबू तेरी सांसों की, आती थी इन सांसो से,
हैं जब्त मेरी आँखों में, सब मिलन के वो अफ़साने,
तुम जा छुप जाओ चंदा, सब याद दिलाना छोड़ो,
मन के सागर में भीषण, तूफान उठाना छोड़ो।


जो पूरे न हो पाएं, मत ऐसे स्वप्न दिखाओ,
मंजिल की राह दिखाकर, तुम ऐसे न भटकाओ,
हाँ प्रेम किया है तुमसे, हाँ नेह किया है तुमसे,
बस इस गलती का पल पल, अहसास दिलाना छोड़ो,
मन के सागर में भीषण, तूफान उठाना छोड़ो।

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