मृत्यु भोज

सुबह तड़के रामदीन के घर से उसकी पत्नी की जोर से रोने की आवाज सुनकर सब जागे। उसके बाबू जी का भी हाल बुरा हो होने लगा। सबको पता चल गया कि रामदीन अब नही रहा। 35 साल का रामदीन परसो तक सही सलामत था। परसो खेत में काम करते हुए एक साँप काट गया। डॉक्टर के पास जाने लगे तो सबने कहा कि साँप का जहर जल्दी उतारना होगा और वहां के एक तांत्रिक ने झाड़ फूंक करके भभूत दी और कहा उत्तर गया जहर। कल तक सब सही था। रात ही तबियत खराब हुई और अचानक उसकी मौत हो गई।

"चंपा" रामदीन की पत्नी यही कोई 28-30 साल की थी, थोड़ा पढीं लिखी थी, एक बेटा भी था जो सिर्फ पांच साल का था, बाबूजी बीमार थे। चम्पा ने पूरी कोशिश की कि डॉक्टर से दिखा दे लेकिन डॉक्टर दूर दूसरे गांव में था और कोई गाँव वाले साथ चलने को तैयार नही था। सब अंधविश्वासी थे और तांत्रिक से पूछे बिना कोई साथ चलने को तैयार न था। इसलिए सांप काटने से शायद रामदीन बच भी जाता लेकिन लोगो ने मिलकर उसको बचने का मौका ही नही दिया। धीरे-धीरे भीड़ होने लगी, पूरा गांव आ गया। चम्पा का और उसके बेटे का बुरा हाल था की अब कैसे गुजरेगी ये जिंदगी। बेटे का क्या होगा। गांव की औरतें उसको संभालने की कोशिश कर तो रही थी लेकिन, पति के साथ भी गरीब औरत की जिंदगी इतनी कठिन होती है अब उसके बिना अपनी जिंदगी और बेटा, क्या करेगी वो सोच सोच कर अचेत हो जा रही थी।

हम कहित रही डॉक्टर के दौरे चलो, कोई न सुनी, अब का होइहे हमार, हमार बचवा के। ऐसे नही जा सकत हो हमका छोड़ कर। ई सब मिलकर हमार सब घर उजाड़ दीहें। बार बार ये ही बोले जा रही थी।

अरे जीवन मरण तक ऊपर वाले के हाथ है बेटी। अगर मरना था तो डॉक्टर क्या भगवान भी नही बचा पाते। तू बेकार में चिंता न कर। सब अच्छा करते है भगवान। तेरा भी भला ही होगा। तांत्रिक बाबा ने बोला। और अंतिम संस्कार करने की तैयारी को बोल कर चले गए।

गांव के सभी लोगो ने नंदू, रामदीन के पिता के साथ मिलकर अंतिम संस्कार का इंतज़ाम किया। इस शोक में परिवार टूट गया था लेकिन गाँव वालों के लिए ये सब त्योहार जैसा था। जैसे कोई मेला लगा हो। सब आने वाले के लिए चाय पानी का इंतज़ाम कुछ औरते कर रही थी। और कुछ निर्लज्ज लोग सुबह से बैठे थे और बार बार मज़े से स्वाद का आनंद ले रहे थे साथ मे हंसी मजाक भी कर ही रहे थे।

का पंडित जी, भोज का इंतज़ाम होई गए। दू दिन झक कर पेट पूजा होइहि। शंकर पंडित जी से बोला।

राम राम! क्या कहत हो रे शंकरवा, जैसे हमही सब खायब तू त शोक में भूखे रहीवे। पंडित जी ने कहा।

नाही रे पंडित जी, हम तो खायब खूब लेकिन तोहार तो दू दिन अबही, दान दक्षिणा, फेर हर महीना एक दिन साल भर तक भोज, फेर पहिला बरखी, मज़ा तो तोहार। शंकर ने जोर से हंसते हुए कहा। और गांव के सब लोग हंस दिए।

चम्पा का बुरा हाल था और यहां सब मज़े में हंस बोल रहे थे। वैसे भी सही बात है मारना अंतिम और परम सत्य है। किसी मरने वाले के साथ नही मरा जाता ये भी सत्य है। रामदीन का अंतिम संस्कार हुआ। घर मे अब चूल्हा नही जल सकता था तो पड़ोस वाली काकी ने खाना बना कर भेजा। बेटे को बड़ी मुश्किल से चम्पा ने खिलाया। पिताजी तो कुछ खा ही नही पाये और चम्पा की जिंदगी में अब बचा ही क्या था। पर बेटे को देखकर उसने जीने का फैसला कर ही लिया था। लेकिन खाना नही खा पाई। सिर्फ पानी पिया।

अगले दिन शाम को सब क्या कैसे होगा तैयारी करने लगे। किस दिन क्या क्या खाना बनेगा कौन सी मिठाई होगी। कितने लोग आएंगे। बहस ये हो रही थी कि कितनी मिठाइ, कितने किलो चावल सब लगेंगें। जितने मुहँ उतने तरह के हिसाब। रामदीन कोई अमीर तो था नही लेकिन कुछ जमीन थी जिसमे से कुछ गिरवी रख कर पैसों का इंतज़ाम किया, कुछ पहले ही गिरवी थी। दान, कर्मकांड, गौदान, सब का बजट बना कर काम बांट दिए। जवान आदमी मरा है अगर कुछ कमी रह गई तो गाँव के लिए सही नही होगा। ज्यादा हो जाये लेकिन कम नही होना चाहिए पंडित जी सबको समझा रहे थे।। एक आदमी सब चीज़ों को लिख रहा था कि पहली बरसी पर वो ही सब खाना बनेगा जो अभी बनेगा, कुछ छूट न जाए इसलिए सब लिखा जा रहा था।

नंदु की हालत पहले ही सही नही थी ऊपर से जवान बेटे की अर्थी को अपने कंधे पर उठाने से बड़ा बोझ कोई होता ही नही, तो वो और भी टूट गए। और लगा की कही वो भी न निकल लें। लोग दुआ मना रहे थे कि कैसे भी ये काम निपट ले, अगर अभी कुछ हुआ तो दोनों का श्राद्ध साथ ही होना होगा। सब बैठे ये ही बातें कर रहे थे। शंकर ने पंडित जी से कहा--

अगर नंदू भी निकल लियो तो एक ही भोज में सब निपट जाय, और तुम्हरे दान का क्या होइवो रे पंडित जी। अब सब एक भी बार मे निपट लिए समझो।

अच्छा तोहार भोज भी तो एक ही में निपट जाय सो अपनी फिकर करो। हमको तो जितना देंगे स्वर्ग में जाने का रास्ता उतना सरल होय, न देंगे तो नरक में भी जगह न मिले। तो हमका सब मिलेगा ही, नुकसान तोहार शंकरवा। प्रार्थना कर की पंद्रह दिन और खींच ले जाए ई नंदू।

सब ने कहां हाँ सही कह रहे हो पंडित जी। हम सबका तरफ से ग्यारह हजार महामृत्युजय मंत्र जाप और हवन कल कर दो नंदू के लिए।

ठीक है ठीक है, हम कल से ही शुरू कर देत हूँ। रोज एक सौ आठ। पंडित जी बोले।

इधर नंदू बिस्तर से लग गया, चम्पा की हालत और खराब हो गई कि अब वो कैसे क्या करेगी। खेत की सारी जमीन गिरवी हो गई, सिर्फ छोटा सा घर है। क्या करेगी कैसे करेगी, चंदन को बड़ा अफसर बनाने का सपना कैसे पूरा होगा समझ नही पा रही थी और अब पिताजी भी। अगर कुछ हो गया तो सब खत्म हो जाएगा। ये समाज ये गाँव जीने नही देगा। आखिर जो चला गया उसके नाम पर भी समाज नोचने पर लगा है। किसी ने आज तक ये नही पूछा था कि खाया या नही लेकिन पूरे समाज को एक के चले जाते ही होने वाले भोज में क्या क्या मिलेगा ये विचार सबसे पहले आता है। चम्पा कर भी क्या सकती थी सिवाय रोने के। लेकिन उसने ये यो पक्का कर लिया था जियेगी तो बेटे के लिए उसे बड़ा अफसर बना कर रहेगी।

आखिर कैसे भी सब कर्म कांड खत्म हुए, दो दिन गाँव वालों जे झक कर दावत उड़ाई। उस शाम चंदन जो महज पांच साल का था,ने मां से पूछा बाबू जी चले गए तो ये मिठाई और भोज किसलिए मां सब इतना खुश होकर कैसे खा रहे है माँ। आप इतना रोती हो और बाहर सब मजे से खा रहे है। सच भी था पांच तरह की सब्जी, दाल, चावल, पूड़ी, पांच तरह की मिठाई, दही, सब पेट भर खाना और उससे ज्यादा खराब करना श्राद्ध भोज में भी शर्त लग रही थी कौन ज्यादा पूड़ी खायेगा या कौन ज्यादा रसगुल्ले। क्या सच मे मानव यही है? इतना गिरा हुआ, जो बात एक बच्चा समझ पा रहा था लेकिन बड़े नही। सब का वयवहार ऐसा कि किसी की मृत्यु पर होने वाले खाने को भी बारात के खाने की तरह लुफ्त लेकर खाया जा रहा था। एक बात और थी, जितना लोगो ने खाया उतना ही बच भी गया। क्या हिसाब था? इतनी बर्बादी थी। अब क्या था सब खाना घर भी ले जा रहे थे ताकि कल और परसो तक भी चल जाये जाड़े के दिन थे तो कोई परेशानी न थी।

क्या सच मे इसके बिना स्वर्ग के दरवाजे बंद होते है। क्या सच मे भगवान भी स्वर्ग और नरक भेजने के लिए खाना कितनो को खिलाया, क्या खिलाया, पंडित को कितना दान दिया ये मापदंड अपनाते है? क्या इंसान के साथ भगवान भी इतना ही लोभी है?

कैसे भी बड़ी मुश्किल से समय गुजर रहा था कि सवा महीने बाद ही एक दिन नंदू भी भगवान को प्यारे हो गए। और फिर वही सब हुआ। लेकिन इस बार चम्पा ने साफ साफ बोल दिया कि भोज होगा तो लेकिन बहुत थोड़ा सा। पैसे नही है जो थे पहले ही खर्च हो गए। सब गाँव वालों ने विरोध किया। पंचायत बैठी और फैसला हुआ कि सब कुछ होगा, गरीब है लेकिन पिता की मुक्ति के लिए तो ये सब करना होगा चाहे जमीन बेचे या कुछ भी करो, नही तो चम्पा के घर के साथ गाँव मे भी अनहोनी हो जाएगी।

अब जब कुछ था ही नही तो कैसे होगा ये ही सोच कर चम्पा साहूकार के पास गई कि कुछ नही हुआ तो गिरवी जमीन बेच ही कर कुछ कर लुंगी। आखिर रहना तो इसी समाज मे है। साहूकार ने उसे बड़ी ललचाई नज़रो से ऊपर से नीचे तक देखा जैसे अभी खा ही जायेगा और कहा, पहले ही बेचने के बराबर दे दिया अब क्या मिलेगा। चल ये तीस हजार ले अभी काम खत्म कर। कोई ज्यादा देगा तो तेरे को और जो होगा दे दूंगा। सब काम निपटा कर आना। फिर हिसाब करते है और क्या देना लेना है। और हाँ ब्याज भी नही दिया दो महीने का वो भी कटेगा।

ठीक है सेठ जी। आप बहुत दयालु हो। कहकर चम्पा वहां से निकल ली।

चम्पा ने बीस हज़ार रुपये गाँव वालों को दिए लेकिन देते हुए वो रो रही थी कि अब सब छिन गया बेटे का सपना जीवन आपकी आखरी उम्मीद। लेकिन किसी के रोने से श्राद्ध थोड़े रोक सकते है। आखिर स्वर्ग जाने के मार्ग में कौन आना चाहेगा, और आत्मा अतृप्त रह गई तो गाँव को उजाड़ देगी। आखिर सब हुआ। फिर से वही सब, वही खाना, वही मौज मस्ती, वही बारात की तरह सब कुछ। चंदन और चम्पा बस रोती आंखों से सब देखते रहे चम्पा ये ही सोच रही थी कि सब हो जाने के बाद खाने को भी मिलेगा की नही उसको और उसके बेटे को ये पूछने वाला भी कोई नही होगा यहां पर।

कुछ दिन बाद चम्पा को बुलाने सेठ का आदमी आया। वो बड़ी मुश्किल में थी। सोचा कि वही कुछ काम मिल जाएगा और वो सेठ के यहां गई। वहां सेठ ने सारा हिसाब किया और चम्पा को कुछ नही मिला। बल्कि ब्याज देना रह ही गया। चम्पा ने बहुत मिन्नत की, कि वो दे देगी। कुछ भी करके। या वो उसको अपने यहां काम ही दे दे, और दो वक्त की रोटी और बेटे को स्कूल का ख़र्चा और कुछ नही चाहिए। कुछ भी कर लेगी। लेकिन सेठ नही माना। लेकिन कुछ सोच कर उसने उसको काम पर रख लिया।

आखिर एक दिन...

चम्पा को काम करते हुए सात महीने हो गए, लेकिन सेठ  ने सिर्फ खाने और पहनने को पुराने कपड़ो के अलावा कोई पैसा चम्पा को नही दिया। चम्पा को बेटे की पढ़ाई की चिंता थी वो ही अब उसके जीने का सहारा था , जो गाँव के सरकारी स्कूल में पढ़ता था, को कैसे भी बड़ा आदमी बनाना है। बस कैसे भी ये ब्याज खत्म हों यही सोच कर वो दिन रात काम करती जा रही थी। एक दिन उसने किसी शहर से आये व्यक्ति की सेठ से बातचीत सुनी।

अरे सेठ जी ये क्या मस्त माल छुपा रखा है।

अरे क्या कह रहे हो राजू, किसकी बात कर रहे हो।

यही काम वाली क्या मस्त है कहां से पकड़ ली? राजू ने बोला।

कुछ नही यार, यही गाँव की है, पति मर गया फिर ससुर, सारी जमीन बेच कर, कर्जा चुकाया, लेकिन ब्याज राह गया तो काम करती है हमारे यहाँ, बेचारी बहुत दुखियारी है, साथ ने 5 साल का बेटा भी है। कर्जा चुकाने में ही पूरी जिंदगी काम करेगी और क्या।

क्या पूरी जिंदगी यही ऐसे ही काम करना होगा, चंदन का क्या होगा क्या वो भी पूरी जिंदगी बेगारी करेगा। नही नही, वो मन ही मन सोच रही थी कि राजू की आवाज सुनाई दी।

अरे मुझे दे दो इसे, मैं शहर ले जाता हूँ।

अरे तू क्या करेगा इसका। पगला गया है क्या। सेठ ने हंसते हुए कहा।

करूँगा क्या, शहर में बहुत से लोगो को रात को मस्ती के लिए चाहिए होती है औरत। और चम्पा जैसी मस्त औरत के अच्छे दाम मिल जाएंगे। और ऊपर से बेटा, डबल फायदा। तुम बताओ कितना ब्याज है मैं देता हूँ। राजू बेशर्मी से बोलता जा रहा था।

अरे नही काहे पाप का भागी बनाते हो। सेठ बोला।

दो गुना दूंगा अभी, बोलो अभी सौदा पक्का करता हूँ। राजू ने जोर देकर बोला।

है तो बारह हज़ार। लेकिन मैं ये सब नही करूँगा। सेठ ने कहा।

चालीस हज़ार देता हूँ तुम अपना ब्याज खाओ। तुमको दे रहा हूँ। बाकी ये पैसा मैं वसूल कर लूंगा। राजू ने कहा

चालीस। दाम सुनते ही सेठ मान गया, लेकिन उसने सोचा कुछ और मिल जाये। और राजू को बोला नही नही।

अरे सेठ तुम भी ज्यादा लालच न करो पचास में सौदा पक्का, राजू ने बोला।

राजू जब तू इतना कह रहा है तो सत्तर में बात पक्की। सेठ बोला।

अरे अभी तो बोल रहे थे पाप नही करवा अब सत्तर चाहिए। चलो पैसठ हज़ार में पक्का और राजू एक सप्ताह में आने की बात कहकर चला गया।

ये सब सुनकर चम्पा अवाक रह गई। सही भी था इतने दु:खो के बाद अब ये नई मुसीबत आ गई। उसको अपनी और अपने बेटे की जिंदगी बचानी थी किसी भी हालत में। लेकिन कैसे। एक बात तो थी इतने दु:खो ने उसे बहुत कुछ सिखाया था। पढ़ी तो थी थोड़ा सोचा शहर जाकर ही कुछ कर लुंगी। शायद कुछ रास्ता मिले। लेकिन यहां से निकलना मुश्किल था। रात भर उसको नींद नही आई। उसने सोचा और अगले दिन सेठ से बात करने का पूरा प्लान बनाया ताकि कोई शक न हो। क्योंकि कोई भी गलती उसकी और उसके बेटे की जिंदगी को नरक से भी बदतर बना सकती थी। उसके पास जीवन का बस एक ही रास्ता था वहां से किसी को कोई शक आने से पहले निकल जाना। वरना शायद उसको मृत्यु का चयन करना होगा जो उसका आत्मसमान होने नही देता।

अगले दिन वो सेठ के सामने रोते हुए पहुँची, वो बहुत बुरी तरह रो रही थी। सेठ चम्पा को रोता देखकर चौक गया।

क्या हुआ री क्यों रो रो कर आंखें सूजा ली हैं। सोई नही क्या रात भर।

नही सेठजी। रात को सपना आया कि मां की हालत बहुत खराब है, दिल भी घबरा रहा है।

अरे सपना ही है कुछ नही होता। सेठ बोला।

नही सेठजी, पिता जी के समय भी ऐसा ही हुआ था। वो चल बसे थे। मझे यकीन है कुछ हुआ है।

अरे सपने सच नही होते। चुप हो कर काम कर। सेठ बोला।

नही सेठ जी पक्का कुछ हुआ। क्या मैं आज चली जाऊं, सब ठीक होगा तो कल अंधेरी से पहले आ जाउंगी। मेरा मन भी शांत हो जाएगा। नही तो कुछ काम मे भी मन नही। पक्का सब ठीक रहा तो कल अंधेरी से पहले आ जाउंगी। वैसे भी मेरा कोई अपना नही उसके अलावा। जाने दो जल्दी आ जाउंगी।

सेठ को चम्पा पर शक तो नही था इसलिए उसने मना नही किया।

चम्पा को पैसों की जरूरत थी तो उसने अपनी पति की आखरी निशानी मंगलसूत्र सेठ को देकर कहा कि जो पैसे हो सकते हों उतना दे दो जाने आने का खर्च। बच्चा है उसके लिए पैसे तो चाहिए न।

सेठ को चम्पा का रोना बिल्कुल सच लग रहा था। लगता भी क्यों नही, चम्पा सच मे रो रही थी। उसने शक न हो इसलिए मिर्च के हाथ आंखों पर लगा लिए थे। उसकी जलन से आंसू आ रहे थे और आंख भी लाल थी।

सेठ ने चम्पा को पांच हज़ार दिए जो मंगलसूत्र की सच मे पूरी कीमत थी। शायद सेठ ने आज पहली बार किसी को पूरी कीमत दी थी। वो तो इस बात से खुश था, सोना उगलने वाली जमीन भी कौड़ियों दाम मिली, मुफ्त में सेवा भी करवा ली, अब ऊपर एक हफ्ते में ही पैसठ हज़ार मिलने वाले है।

चम्पा अपने बेटे को लेकर चली गई। जाते हुए दिल मे खुश तिनकी योजना कामयाब हुई। उसकी आंखें बुरी तरह जल रही थी। निकलते ही आंख धो कर जलन को शांत किया, लेकिन पहले ही मरी मां की बीमारी का सहारा लेना उसे अच्छा नही लगा लेकिन करती भी क्या। जिंदा लोगो को बचाना पहले जरूरी है। भगवान और माँ से क्षमा मांगती हुई वो रेलवे स्टेशन पहुची। उसको कुछ पता नहीं था कहाँ जाना है लेकिन इस मुसीबत से निकलना हैं ये मालूम था।

उसे अपनी सहेली का ध्यान आया जो अब दिल्ली में रहती थी। उसने वही जाने का फैसला किया। लेकिन उसका पता लेने से पहले अपने गाँव जाना पड़ा। वहां जाकर पता लेकर वो निकल पड़ी अपने जीवन को नरक बनने से बचाने की लड़ाई लड़ने। अपने बेटे को बड़ा अफसर बनाने के अपने सपने को पूरा करने।

लेकिन कोई मुसीबत ऐसे ही पीछा नही छोड़ती। ट्रेन पर चढ़ते हुए किसी ने बटुआ मार लिया जिसमे कुछ पैसे थे। लेकिन चम्पा को शायद अंदेशा था कि मुसीबत आसानी से पीछा नही छोड़ती उसने सारे पैसे और पता ज्यादा संभाल कर रखे थे जो बच गए। किसी तरह बो दिल्ली आई तो उसका शहर देख कर सर ही चकरा गया। पहली बार उसने शहर देखा था। चंदन और चम्पा की हालत एक समान थी। दोनो ही चकित।

इतना बड़ा स्टेशन, स्टेशन से निकलते ही बड़ी-बड़ी बिल्डिंग, इतनी सड़क, गाड़ियां, लोग। ये देखकर उसको लगा कि उसका सपना पूरा होना इतना भी आसान नही होगा।

भैया ये पता बताओगे कैसे जाना है। चम्पा ने एक व्यक्ति से पता पूछा

अरे सरिता विहार, मैं यहाँ ही रहता हूँ। मैं तुमको वहां ले चलूंगा। व्यक्ति ने बताया। लगता है शहर पहली बार आई हो। व्यक्ति ने पूछा।

हाँ काम की तलाश में आई हूँ। यही एक सहेली रहती है। आप वहां तक पहुंचा दो मुझे।

हाँ चलो।

लेकिन अचानक आगे आगे और पीछे से पुलिस को देखकर वो अचानक भाग गया।

पुलिस ने चम्पा को घेर कर पूछा कहां गया वो।

नही मुझे नही मालूम वो तो मुझे मेरी सहेली के घर ले जाने वाला था। चम्पा ने कहा।

सहेली के घर नही, कोठे पर ले जाने वाला था। दलाल था। लड़कियों को बेचना उसका धंधा है। बेच देता तेरे को और तेरे इस छुटकू को। पता नही क्यों आ जाते हो तुम यहाँ इनके हाथों में फसने को। एक पुलिस वाला बोला।

क्या। चम्पा का दिल बैठ गया। जिस मुसीबत से बच कर आई, वो यहां भी। वो बेटे को गले लगा कर रोने लगी।

पुलिस इंस्पेक्टर ने चम्पा से कहा किसी पर यकीन न किया करो इतनी जल्दी। और जो ये हवलदार तुमको ऑटो करवा देता है। और ये नंबर लो। कोई दिक्कत हो या वो फिर मिले तो कॉल कर देना।

चल जा इनको ऑटो में बैठा कर आ, और ऑटो का नंबर नोट कर लेना। इंस्पेक्टर ने हवलदार को बोला।

भगवान को शुक्रिया करते हुए वो सोच रही थी कि अब कुछ भी हो किसी पर यकीन नही करना आसानी से।

चम्पा बरसों बाद अपनी सहेली रेणु से मिली, और खूब रोइ। रोते रोते उसने अपनी जिंदगी की सारी कहानी उसको सुना दी।

जीवन की नई शुरुआत करने में चम्पा को रेणु का बहुत साथ मिला। रेणु खुद एक NGO चलाती थी उस में चम्पा रेणु का सहयोग करने लगी। चम्पा इस काम से खुश थी। ये NGO बच्चो की शिक्षा और महिलाओं के लिए काम करता था। चम्पा ने बहुत मन लगा कर लोगो की सेवा की, भयंकर बीमारियों के मरीजो कि दिनरात सेवा करती, बेटे को पढ़ाने में लगी रहती। इस तरह कठिन मेहनत के दम पर वो सबकी चहेती बन गई। NGO की मदद से चंदन की पढ़ाई भी अच्छी होने लगी।

आज 25 साल हो गए। चम्पा ने NGO के साथ बहुत काम किये, और बेटे की अच्छी परवरिश की। आज वो आईएएस परीक्षा पास कर चुका है और उसकी पोस्टिंग जिलाधिकारी के रूप में उसी जिले मे हो गई है जहां उसका गांव था, जहाँ से वो एक दिन भागी थी। जहां लोग आज भी मृत्यु का आनंद उठाते है। चम्पा ने फैसला किया हैं कि अब NGO की एक शाखा वहां भी शुरू करेगी और वहां किसी को भी उस स्थिति में नही फसने देगी जिसमे वो फंस गई थी और लगभग देह व्यापार का हिस्सा बनते बनते रह गई थी, उसने मृत्युभोज के खिलाफ भी जागरूकता पैदा करेगी। एक सप्ताह बाद वो फिर से उसी जगह थी, लेकिन इस बार नए उत्साह के साथ, नए सपनो के साथ, और बिना किसी डर के।


Comments

Popular posts from this blog

अरमानों पर पानी है 290

रिश्ते

खिलता नही हैं