गीत कोई तुम गाओ

गीत कोई तुम गाओ, और इस दिल को बहलाओ,
मै भूलूं जगत की रीते, तुम भी जग को बिसराओ।
मै दीप करुँ, तन मन को, तुम दीप शिखा बन जाओ,
पतझड़ सा है ये जीवन, तुम फूलों सा महकाओ।

है चंद्रिका से शीतल, ये रातें खूब जलाएं,
तुमसे दूर ओ साजन, रजनीगन्धा ना भाये,
कब तक की है ये दूरी, बुझता उम्मीद का दीपक,
तुम काली घटा बनकर के, बस प्रेम सुधा बरसाओ,
मै दीप करुँ, तन मन को, तुम दीप शिखा बन जाओ।

जो जन्मो की है दूरी, तो जीकर क्या है करना,
तुम बिन ओ मेरे साजन, मुश्किल बहुत है मरना,
बस जीवन ये एकाकी, ढलते सूरज की छाया,
तुम आ जाओ जीवन मे, एक नया सवेरा लाओ।
मै दीप करुँ, तन मन को, तुम दीप शिखा बन जाओ।

दिल कब से ढूँढ रहा है, कोई मार्ग तुझे पाने का,
ऐसा ना कि हो जाये, फिर वक़्त मेरे जाने का।
मै दुनियाँ छोड़ ना जाऊँ, तुझसे मिलने से पहले,
तुम जल्दी से आकर बस, मुझको अपना कर जाओ।
मै दीप करुँ, तन मन को, तुम दीप शिखा बन जाओ।

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