प्रकृति
जीवन शक्ति, जीवन आधार,
जीवन आरम्भ, जीवन साकार।
बस प्रकृति के हाथो सम्भव,
मानव जीवन का उपकार।
किया निरंकुश असीमित दोहन,
फिर भी करती जीवन पालन
जिसमे फलित हो सब आशायें,
है सहनशीलता का व्यवहार।
रूप धरा बन नारी आई,
दिया जीवन को आधार,
पुत्री, बहन प्रेमिका पत्नी,
और माता मे हुई साकार।
समझ विधाता जब जब खुद को,
किया मानवता का अपमान,
दुर्गा काली, रूप मे आई,
किया दानवता का संहार।
मातृ स्वरूपा दे देती है,
अपना जीवन भी उपहार,
पर जब अति हुई मानव की,
मिट्टी कर देती संसार
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