चांदनी रात में

चांदनी रात में, अधखुले नैन से,
ढूँढते है तुझे, छत पर बैचैन से,
दीप जलने लगे तुम कहाँ हो प्रिये,
नैन तकते हैं, राह कब से बैचैन से।
चांदनी रात में, चांदनी रात में...

सादगी का जो श्रन्गार तुमने किया,
जिन्दगी को मझधार तुमने किया,
इश्क़ का है ये दरिया, और डूबा हूँ मैं,
निगाहो का क्या वार तुमने किया।
अब करुँ क्या मै, इस दिल-ए-नादान का,
खो गया ये तुझी मे प्रथम रैन से।
दीप जलने लगे तुम कहाँ हो प्रिये,
नैन तकते हैं, राह कब से बैचैन से।
चांदनी रात में, चांदनी रात में...

स्वप्न मे भी कभी तुम तो आते नही,
मुझको दामन मे अपने छुपाते नही,
मै तो बैचैन हूँ, अपने हालात पे,
क्या हुई है खता, ये बताते नही,
जग है थम सा गया, चाँद नम सा गया,
अब तो आती नही, नींद भी चैन से।
दीप जलने लगे तुम कहाँ हो प्रिये,
नैन तकते हैं, राह कब से बैचैन से।
चांदनी रात में, चांदनी रात में...

जो बनी भी नही, उस कहानी को दिल,
ढूंढता है तेरी, मेहरबानी को दिल,
बढ़ गई जो बहुत पीर, बहने लगी,
ढूंढता है तेरी हर निशानी को दिल,
मुझसे कह दे, अगर तेरे काबिल नही,
मर तो पाऊंगा, फिर मैं जरा चैन से
दीप जलने लगे तुम कहाँ हो प्रिये,
नैन तकते हैं, राह कब से बैचैन से।
चांदनी रात में, चांदनी रात में...



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