अपराधी

फूल को सुन्दर फूल कहा,
रूप, अप्सरा का रूप कहा
चांद भले पत्थर ही सही,
उसको भी कितना खूब कहा,
जहान मे सुंदर है जो,
तेरा है प्रारूप कहा,
खुद पर जो अभिमान लिखा,
देश का स्वाभिमान लिखा,
जो क्रोध मे था तो क्रोध लिखा,
तो दुनिया की नजरों मे,
गीत सभी वो सुंदर थे,
लेकिन जब था प्रेम ये हुआ
नैनो का जो खेल हुआ
जो दिल मे थी वो, लगी कही,
दिल मे जो है छवि कही,
हुस्न ये तेरा बेमोल प्रिये,
दिल के जो थे बोल कहे
तेरे दीवाने की चाहत की
दिल मे जो थी बात कही,
जो दिल मे रखती दुनिया है,
खुलकर सारी वो बात कही,
प्रेम किया साकार लिखा,
प्रथम मिलन का सार लिखा,
तब से दुनिया मे पापी हूँ,
वासना का साथी हूँ,
तुमसे प्रेम कह जो दिया,
बस तब से मै अपराधी हूँ,
जो दुनिया छुप छुप कर करती,
खुल कर कहने का भागी हूँ।

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