जरा तेरी जो परछाई
जरा तेरी जो परछाई, मेरे ख्वाबो मे आती है,
तेरे हाथों की नरमाई, मुझे जब याद आती है,
सोच कर तेरी बातों को, बहुत रोता हूँ रातों को,
ये लम्बी रात सर्दी की, गुजर आंखों मे जाती है।
मैं कह दूँ ये भी मुमकिन है, हमे चाहत ने लूटा है,
मगर मालूम है मुझको, मेरी किस्मत का धोखा है।
तेरी चाहत की सच्चाई,ब मुझे जब याद आती है।
सोच कर तेरी बातों को, बहुत रोता हूँ रातों को,
ये लम्बी रात सर्दी की, गुजर आंखों मे जाती है।
क्या वादे थे वो उल्फत के, क्या कसमें थी मोहब्बत की,
हमने संग सजाई थी, हसीन दुनियां मोहब्बत की,
तेरी बातों की गहराई, मुझे जब याद आती है,
सोच कर तेरी बातों को, बहुत रोता हूँ रातों को,
ये लम्बी रात सर्दी की, गुजर आंखों मे जाती है।
तेरे धोखे मे दिल लेकर, कहा से ये कहा आया,
तेरे दर, तेरी गलियो ने ना ठुकराया ना अपनाया,
तेरी शादी की शहनाई, मुझे जब याद आती है।
सोच कर तेरी बातों को, बहुत रोता हूँ रातों को,
ये लम्बी रात सर्दी की, गुजर आंखों मे जाती है।
वाह! बहुत सुंदर कविता। मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
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