मैं फिर आऊंगी

उस सुंदरता का चातक सा मै,
एक उसे देख लेने की चाह मे,
आस लगाये एकटक निष्क्रम,
घट, पल, घड़ी, पहर, दिवस,
निष्प्राण से गुजर रहे,
वो सृष्टि के कुछ मधुरतम शब्द,
"मैं फिर आऊंगी"
तुम्हारे सुन्दर मधू होठों से,
सुनकर बैठा उसी पथ पर,
बस एक तुम्हारी, पुन:
आगमन, की आस लेकर,
जीवन भूल, विषाद का सागर,
साथ ले बस एक दीप आशा का,
एक तुम्हारी बाट जोहता,
अपलक, कि तुम आओगी,
वचन अपना जरूर निभाओगी,
कितने पल, कितने दिन, कितनी रातें,
कितने माह, कितने वर्ष, कितने जनम,
लेकिन, ये पूछ लेना भी तो,
प्रेम का अपमान ही है,

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