चीरहरण p284

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥४-७॥

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥४-८॥

ईश्वर को उन्हीं के इन वचनों का स्मरण करवाती मेरी रचना, इसमें ईश्वर का आह्वाहन तो है ही साथ ही लोकतंत्र के ईश्वर का भी आह्वान है...



राजनीतिक सत्ताओं को जब चीर हरण भा जाता है,
जब राजा कह मैं अंधा, निज लालच से भर जाता है।
जब जनता अंधी हो जाए, राजभक्ति में भूले देश,
हे चक्रधारी! तू चुप होकर, किससे ऐसे डर जाता है?

लगता मिथ कथाओं का, अंबार है रामायण गीता,
लगता मिथ कथाओं ने, शिव का वो नेत्र कहा तीजा,
लगता वो राम भी सोया है, लगता हनुमान भी खोया है,
जो धर्म-धर्म ही कहता था, कलि ने उसको भी धोया है,
या सत्ताओं के प्यासे हो, ये सब अंधे बन बैठे हैं,
सब देव हैं जो, त्रिदेव हैं जो, जाकर कलि से छुप बैठे हैं
कोई आवाज नहीं आती, कोई न राह दिखाता है,
हे चक्रधारी! तू चुप होकर, किससे ऐसे डर जाता है?

जनता से मत को दान में ले, नक्कारे राजा बन बैठे
रंग बदल कर जो आए, सियार ही दादा बन बैठे,
महीनों तक चुप रह जाना, आखिर कैसे हो पाया है,
या खुद के ही लालच ने, चुप होने का हुनर सिखाया है,
आखिर कैसे राजाओं को, नींद भला आती होगी,
चीख पुकार क्या इनके बहरे, कानों तक न जाती होगी,
आखिर कैसे उन आंखों का, पानी तक मर जाता है,
हे चक्रधारी, तू चुप होकर, किससे ऐसे डर जाता है?

कैसे मानव तुम सत्ताओं के, मोहरे बन कर चल जाते हो,
मतदान में जिसको सत्ता दी, उससे खुद ही डर जाते हो,
कैसे मानव तुम खुद से ही, खुद का ही चीर हरण करते,
कैसे इंसान जो नारी को, मानव तक समझ न पाते हो
तुम ही अपराधी हो इसके, राजा चुपचाप जो बैठा है,
तुमसे ही शक्ति को पाकर, अहंकार में भर वो बैठा है।
अहंकार तो निश्चय ही, जीवन को नरक बनाता है
हे चक्रधारी, तू चुप होकर, किससे ऐसे डर जाता है?

तुम ही शक्ति हो तुम खुद ही, सत्ताओं के निर्माता हो,
लोकतंत्र में एक तुम ही, सत्ता के भाग्य विधाता हो!
खुद को इन प्रपंचों से खुद तुमको ही तो बचाना है,
मानवता है शर्मसार, फिर इसको मान दिलाना है!
हैं सत्ता के जो राजवीर, तेरे खातिर वो न आयेंगे,
ये राजवीर जो अंधे हैं, इनको सबक सिखाना है!
उठो फूंक दो उन सत्ताओं को, जो जन का न सम्मान करे,
फिर फूंक दो उन आशाओं को, जो जीवन का अपमान करे!

Comments

Popular posts from this blog

अरमानों पर पानी है 290

रिश्ते

खिलता नही हैं