हँसते रहो मुस्कुराते रहो p285
तुम बस हँसते रहो मुस्कुराते रहो,
यूँ ही हँस हँस कर हमको सताते रहो।
हम तो परवाने हैं, तुझपर मर जाएंगे,
खुद ही जलकर हमें भी जलाते रहो।
तुमसे उल्फत मुझे रोज कहता रहूँ,
तेरे सितमों को हँस कर के सहता रहूँ,
तुम निगाहों से बस रोज चूमो मुझे,
न-न कहकर, ये नजरें झुकाते रहो।
मुझसे उत्फल है तुमको भी कर लो यकीन,
आके बांहों में मुझको तो भर लो अभी ।
मेरी उल्फत में तुम भी हो सोते नहीं,
ये हकीकत भले तुम छुपाते रहो।
हो महफिल में गुमसुम क्यों बैठे हुए,
क्यू हो तन्हा मेरा साथ होते हुए।
मेरी बाहो में आकर के छुप जाओ बस,
मुझसे नजरे न यूँ ही चुराते रहो।
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