ये जीवन है (भाग 4-6)

4

अब तक के भाग में अपने पढ़ा कि रवि पत्नी कविता और बेटे मोनू को लेकर बहुत सालों बाद गाँव आता है। आधी रात के बाद अचानक मोनू कविता खाने के लिए उठाता है उसको कुछ खिलाने के बाद कविता के पूछने पर रवि अपने साथ हुए चींटी के हादसे की बात बताता है और अगले दिन मोनू कविता और रवि खूब मस्ती करते हैं। अब आगे.....

मोनू रवि और कविता बातें कर ही रहे होते हैं की उनके द्वारा मंगाया गया सोलर पैनल और उसका इंजीनियर आ जाते हैं। पहले इंजिनीयर सब जगह का निरीक्षण करता है फिर छत पर जगह चुन कर वहां इंस्टालेशन करने से पहले हमारी जरूरतों का जायजा लेता है। कुछ पंखे, पाँच से छह बल्ब/ट्यूब इत्यादि कुछ इलेक्ट्रॉनिक चीजें चलानी थीं। जिसके हिसाब से दो बैटरी लगाने का प्लान था जिससे कि लगभग बीस से चौबीस घंटे का बैकअप मिल सके तथा वो बैटरी फुल चार्ज रह सके इसको ध्यान में रखकर उसने 1kva का सिस्टम लगाने का फैसला हुआ। जिसमें सोलर पैनल की वारण्टी 25 साल, बैटरी की दो साल की थी और इन्वर्टर की पांच साल की। इस सिस्टम में एक टीवी, छोटा फ्रिज इत्यादि भी चल सकता था। 

सिस्टम लगाते लगाते दुपहर हो जानी थी  लेकिन तब भी दो से तीन घंटे की घूप बाकी थी तो आज रात भर के लिए बिजली का इंतजाम तो हो ही जाएगा रवि ये सोच ही रहा था। रवि इधर काम में लगा था उधर मोनू को घूमने जाना था। बच्चे को क्या मतलब किसी काम से।

'मम्मा चलो न घूमने। बहुत मज़ा आएगा। चलते हैं शॉपिंग करेंगे। मॉल में मज़ा आएगा। वहां चलेंगे खूब, मूवी देखेंगे, और मैकडोनाल्ड का बर्गर भी खाएंगे और मैं अभी तक घूमा भी नहीं यहां क्या क्या है।' मोनू कविता से लगातार जिद्द कर रहा था लेकिन उसको कौन समझाए ये गाँव है। यहां मॉल और मैकडोनाल्ड नही होते।

'बेटा यहां वो सब नहीं होता। बेटा ये गाँव है यहां वो सब कैसे होगा।' कविता ने कहा।

'नहीं होता तो ऑनलाइन आर्डर दे दो, जोमैटो, उबेर इट से या डोमिनोज़ का पिज़्ज़ा कुछ भी मंगवा लो न मम्मा। तीस मिनट में आ जायेगा।' मोनू ने बड़े ही मासूमियत से बोला।
'बेटा हम बहुत दूर हैं यहां वो सब नहीं आता। यहां आते आते तो पूरा दिन लग जायेगा। यहां न मॉल है और न बर्गर पिज़्ज़ा मिलता है।' कविता ने उसको समझाने की बेकार सी कोशिश की। बच्चे अगर इतने आसानी से हार मान लें तो बात ही क्या हो।

'ये नहीं होता तो क्या होता है? यहां में बच्चे बर्गर कहाँ से लाते, और चीज पिज़्ज़ा कैसे खाते?' मोनू का एक और सवाल तैयार था।

'बाबू यहां के बच्चे ये सब बिल्कुल नही खाते। और यहां मॉल, डोमिनोज़ इत्यादि नहीं होते। यहां कुछ और चीजें होती जो हमारे शहर में नहीं होते।' कविता को पता था कि मोनू को समझाना आसान काम नहीं, इसका ध्यान कहीं और लगाना होगा। उसने मोनू का ध्यान भटकाने के लिए कहा।

'अच्छा, यानी यहां दूसरे टाइप के मॉल हैं?' मोनू ने इक्साइटेट होते हुए बोला।

'यस बेटा लेकिन वो बिल्कुल अलग होता है, तुम देखना चाहोगे' कविता ने पूछा।

'ऑफकोर्स मम्मा। चलो चलते हैं घूमने।' मोनू तो जैसे उछल गया।

'लेकिन आज तो सुबह का टाइम तो बनाना में लगा दिया तुमने, नहीं तो हम चलते घूमने' कविता ने कहा।

'तो क्या हुआ अब चलते हैं न मम्मा' मोनू ने बोला।

'नहीं बेटा अभी नहीं। वहां पैदल जाना होगा और अभी दोपहर है और पापा भी बिज़ी हैं न। रात को लाइट आने वाली है आज।'

'अच्छा मम्मा फिर कब जाएंगे' पापा का काम कब खत्म होगा। बताओ न जल्दी' मोनू की उत्सुकता तो बढ़ गई थी।

'काम खत्म होगा तो आ जाएंगे बेटा, लो अभी खाना खाओ और आराम कर लो, फिर हमको पैदल जाना भी है न बहुत दूर तक।' कविता ने मोनू को समझाते हुए कहा।

उधर जल्दी ही रवि का काम भी ख़त्म हो गया और पावर की सप्लाई शुरू हो गई थी। रवि ने इंजीनिअर का बिल पेमेंट किया और शुक्रिया अदा करने के बाद घर को आ गया।

'पापा आ गए। पापा-पापा, पता है यहाँ शहर वाले मॉल नहीं होते।' मोनू तो आते ही शुरू हो गया था।

'अच्छा क्या होता है फिर और और मेरे राजा बेटा को किसने बताया ये सब।' रवि ने मोनू से पूछा।

'मम्मा ने बताया और कौन बताएगा। आपको पता है यहां दूसरे तरह के मॉल हैं और दुकान भी अलग तरह की हैं? यहां डोमिनोज़ और मैक्डोनाल्ड्स भी नहीं होते।

'हाँ बात तो है' रवि मोनू की बातें सुन रहा था।

'और पापा यहां के बच्चों को पिज्जा, बर्गर ये सब नहीं मिलता। न उबर इट है न स्वेगी है। कितना बोरिंग होगा न ये सब इनके लिए। पता नहीं कैसे फन करते होंगे ये सब लोग' मोनू ने बड़े उदास मन से बोला क्योंकि कुछ दिन तो उसको भी है सब नही मिलने वाला था।

'क्या हुआ बेटा उदास हो गया' रवि ने मोनू को उठाते हुए पूछा।

'हम्म थोड़ा सा' मोनू ने कहा।

'क्यों, आपको ये सब चाहिए' रवि ने पूछा।

'लेकिन ये सब तो मिलता ही नहीं यहां, मम्मा ने बताया है।' मोनू ने कहा। 

'तो क्या हुआ जब हम वापस जाएंगे तो अपने बेटे को दिलाएंगे। अभी तो यहां की चीजों को एन्जॉय करते है।, कविता ने मोनू को रवि की गोद से उतारते हुए कहा। 

'चलो जाओ दोनो हाथ धोकर आओ, खाना खा लेते हैं हम सब' कविता ने बोला। 

तीनो ने खाना खाया। खाना खाकर कविता ने मोनू को ये कहकर सुला दिया कि शाम को घूमने जाना है। मोनू बड़ी मुश्किल में सोया। तब जाकर घर मे शांति हुई। 

कविता घर के सारे काम निपटाने लगी। ताकि शाम को आराम से जा सके। मोनू के सोते हुए काम खत्म हो जाये तो अच्छा था नहीं तो उसने उठ कर कुछ नहीं करने देना था। 

क्रमश:


5

अब तक की कहानी में अपने पढ़ा कि रवि अपनी पत्नी कविता और बेटे मोनू को लेकर बहुत सालों बाद गाँव आता है। वहां मोनू गगांव में बाहर मॉल जाने की जिद्द करता है, कविता और रवि उसको समझाते हैं और शाम को बाहर के जाने की बात पर मना कर सुला देते है। अब आगे.....

शाम को मोनू काफी देर तक सोता रहता है तो शाम हो जाती है और शाम को घूमने जाने का प्लान धरा का धरा रह जाता है। रात के टाइम मोनू जब बाहर निकलता है तो वहां बहुत सारी लाइट को टिमटिमाते हुए देखता है। उसे लगता है कि ये सब क्या है।

'पापा ये क्या है, इतनी सारी चमकती हुई। क्या आज दीवाली है, क्या किसी ने फुलझड़ी जलाई है। पापा यह सब क्या है।' मोनू बहुत खुश होते हुए पूछता है

'बेटा यह जुगनू है जो रात को ऐसे ही चमकते हैं। देखो बहुत प्यारे हैं ना।' रवि मोनू से कहता है 

'तुमको वो कविता सुनाई थी न।' रवि मोनू को याद दिलाता है।

टिम-टिम-टिम-टिम करते
शाम ढले ये आ जाते हैं,
फूल-फूल पर, डाल-डाल पर,
आसमान तक छा जाते हैं

कभी बैठते पूलों पर और,
कभी पत्तियों में हैं छुप जाते,
कभी चमकते कभी हैं बुझते,
कितना मन को बहलाते हैं।

कैसे चमक मिली है ऐसी,
कुदरत से जादू के जैसी,
कभी न बुझना रोज चमकना,
जुगनू बस जलते जाते हैं।

मोनू बहुत खुश होता है। उसने आजतक ऐसा कभी नहीं देखा था। रवि भी मोनू को खुश देख कर खुश हो जाता है और उसने भी तो बहुत सालों बाद यह सब देखा था। शहर की चकाचौंध में ये सब देखना संभव ही नहीं है। मोनू जुगनूओं के पीछे उनको पकड़ने के लिए भाग दौड़ करने लगता है, लेकिन उसके हाथ कुछ नहीं आता।

'पापा यह तो बहुत अच्छे लग रहे हैं। क्या मैं उनको पकड़ लूं?' मोनू रवि से पूछता है।

'नहीं बेटा! आप पकड़ नहीं पाओगे, क्योंकि यह उड़ते रहते हैं। इनको उड़ने दो।' रवि कहता है

'पापा मुझे चाहिए। मैं उनको पकड़ लूंगा।' मोनू बोलता है।

'अच्छा पकड़ कर दिखाओ' रवि कहता है।

मोनू एक-एक जुगनू के पीछे फिर से भागने लगता है, लेकिन उसके हाथ कुछ नहीं आता। उसको उदास देख रवि एक जुगनू दोनों हाथों में पकड़ कर उसकी हथेली पर रख देता है। मोनू बहुत खुश हो जाता है।

'पापा यह तो कीड़ा है देखो चल रहा है मेरे हाथ पर। मुझे काट लेगा।' मोनू जोर से चिल्लाता है।

'नहीं बेटा यह नहीं काटेगा।' रवि उसे कहता है।

'मेरे हाथ जल जाएंगे पापा इसे हटाओ, पापा इसे हटाओ।' मोनू चिल्लाता है। 

'आराम से बेटा यह किसी को नहीं काटता। तुम डरो मत। इसको देखो इसके पीछे की लाइट दिख रही है ना यही चमकती रहती है और यह सारी रात भर रोशनी करती रहती है।' रवि ने उसको बताया।

'हाँ पापा आगे से कीड़ा हैं और इसके पीछे से रोशनी है।' मोनू कहता है।

'क्या मैं इसे ले कर मम्मा के पास जाऊं।' मोनू पूछता है।

'ले जाओ लेकिन इसको बाहर लाकर छोड़ देना नहीं तो यह बेचारा मर जाएगा' रवि मोनू को समझाता है।

मोनू जोश में जुगनू को हथेली में रखे और दूसरे हाथ से उसको ढक कर भागता हुआ कविता के पास जाता है।

'मम्मी-मम्मी यह देखो जुगनू। यह ऐसे ऐसे चमक रहा हैं। बाहर आओ, बाहर आओ।' मोनू बोलते हुए कविता को बाहर ले जाता है। और खुशी से हाथ मे रखा जुगनू उसे दिखाने लगता है।

'देखो मम्मा कितने सारे हैं इतने सारे जुगनू, और ये देखो मेरे हाथ में भी पापा ने पकड़ कर दिया। कितना प्यारा है ना। कितना स्वीट सा है।' मोनू कहता है।

'अरे वाह बेटा। हाथ मे जुगनू पकड़ लिया। लेकिन बेटा इसे छोड़ दो नहीं तो यह बेचारा मर जाएगा। इसको हवा में उड़ने दो। ये उड़ते हैं तो खुश रहते हैं और चमकते रहते हैं। अगर तुम इनको पकड़ कर रख लोगे तो यह दुखी हो जाएंगे, और बुझ जाएंगे।' कविता मोनू को समझाती है।

'मोनू खुश होकर अपने हाथ फैला कर उसे हवा में उड़ा देता है और उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहता उसकी आंखें अभी भी जुगनू की तरह चमक रही थी जैसे अभी उसके हाथों में पूरी दुनिया थी। ऐसा नजारा उसने आज तक कभी नहीं देखा था, वह ये सब देख बिल्कुल अचंभित था।

तभी कविता ने बाहर की लाइट जला दी और जुगनू दिखने कम हो गए। 

'लाइट क्यों जला दी मम्मा। देखो सारे जुगनू नाराज होकर चले गए। कितनी प्यारी रोशनी थी वो वाली। अब वो नहीं आएगी क्या?' मोनू ने उदास होते हुए बोला।

मोनू और जुगनू देखने छत पर जाता है। ऊपर जाकर आसमान की तरफ देखता है तो वो और ज्यादा अचंभित हो जाता है। इतना साफ आसमान और इतने सारे तारे एक साथ उसने कभी नहीं देखे थे। वो जोर से आवाज लगाता है।

'मम्मा, पापा इधर आओ, जल्दी आओ' 

रवि और कविता तेजी में ऊपर जाते हैं। उनके आते ही मोनू आसमान की और दोनों हाथ फैला कर दिखाता है।

'मम्मा पापा ऊपर देखो। आसमान में इतने तारे कहीं से आ गए है या ये सारे जुगनू ही हैं?

'नहीं बेटा ये सब तारे ही हैं।' कविता उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहती है।

'इतने सारे तारे? कहाँ से आये? गाँव के आसमान में इतने तारे, तो हमारे यहां क्यों नहीं होते? गाँव का आसमान अलग होता है क्या?' मोनू के सवाल फिर से शुरू हो गए।

तारों से भरा, नीलापन लिए स्याह आकाश। शायद अमावस पास थी और चांद आज देर रात सामने आने वाला था। ऊपर आकाश में सितारों के अलावा कुछ नहीं था। ऊपर जगमगाता आसमान, जमीन पर जगमगाते जुगनू, और बीच में रवि कविता और मोनू, न नीचे न ऊपर, छत पर बिल्कुल अंधेरा, धीमी हवा, फूलों की और मिट्टी की मिली जुली खुशबू, लाइट नहीं थी तो दूर घरो में जलते दीपक और लालटेन, झुंगुरों की कभी आती कभी रुकती आवाजें। कभी कभी मेढकों की टर टर की आवाज। ऐसा लग रहा था कि जैसे वो सब कहीं दूर दूसरी दुनिया मे आ गए हों। जैसे वो  हवा में उड़ रहे हैं और नीचे धरती ऊपर आकाश। सब कुछ स्वप्निल सा था। 

मोनू के लिए तो ये किसी डिज्नीलैंड के कार्टून मूवी का कोई सीन लग रहा था और सबसे अचम्भा ये था कि ये किसी टीवी या सिनेमा हॉल के पर्दे पर नहीं था। वो खुद इस कल्पनिक दुनिया का सच्चा किरदार था। किसी बच्चे की बिन मांगी मुराद के मिलने जैसा ये दृश्य था। उसकी खुशी का ठिकाना नहीं था और ये देखते-देखते वो छत पर रखी चारपाई पर लेट गया या कहें गिर गया। उसे लगा जैसे किसी झूले पर गिरा है। मोनू आंखों को बड़ी बड़ी करके आसमान को ऐसे देखने लगा जैसे वो उसमे उड़ रहा हो, वो भी डोरेमॉन के किसी गेजेट के बिना या जैसे उसे किसी गेजेट ने दूसरी दुनिया मे भेज दिया हो। सब उसकी उम्मीद से बाहर था। 

तभी मोनू चिल्लाया 'वो देखो वो रोशनी की लाइन।'

'बेटा उसको टूटता तारा कहते हैं। सब कहते है उसको देख कर विश मांगो तो गॉड उसको पूरा कर देते हैं।' कविता ने कहा।

'अच्छा  फिर तो मैं बहुत सारे खिलोने मांगूंगा।' और आंख बंद करके बैठ गया।

क्रमश:



6


अब तक के भाग में अपने पढ़ा कि रवि पत्नी कविता और बेटे मोनू को लेकर बहुत सालों बाद गाँव आता है। वहां मोनू रात में जुगनू और सितारों से भरा आसमान देख कर उसमें खो जाता है। अब आगे.....

इधर कविता चारपाई पर बैठ कर मोनू को प्यार से देख रही थी और रवि मोनू को देखते हुए कविता को देखने लगा। हल्की हवा से चेहरे पर उड़ती हुई जुल्फें, चाँद सा चेहरा।

'निगाह झुकाने की, ऐसी अदा पर मरते हैं।
हज़ारो दुनिया मे एक तेरी सदा पे मरते हैं।
तुम्हारी जुल्फों में उलझा हुआ है दिल मेरा,
हजार होंगे हसीं हम एक तुम्हीं पे मरते हैं।

किसने बोला आज चाँद नहीं निकला।' उसने हल्के से कहा।

'क्या बोला।' कविता ने पूछा।

'कुछ भी तो नहीं, तुमने कुछ सुना क्या।' रवि ने पूछा।

'अच्छा फिर ठीक है। मुझे लगा तुमने कुछ बोला।' कविता धीरे से बोली।

'तुमने दिल के अंदर की बात भी सुनने की मशीन ले ली है क्या?' रवि बुदबुदाया।

'जी हाँ ले ली है। तुम भी ले लो और जान लो दिल की बात' कविता ने प्यार भरी मुस्कान के साथ कहा।

'मुझे मशीन की कोई जरूरत ही नहीं। हम तो नज़रों से पढ़ लेते हैं।' रवि ने कविता की आंखों में आँखें डालते हुए कहा।

'तुम जान ही नहीं सकते मेरे दिल की बात। उसके लिए तुम्हारे पास प्यार से भरा दिल होना चाहिए, लेकिन तुम्हारे दिल और दिमाग दोनो में शैतानी भरी पड़ी है। मोनू से कम नहीं हो बिल्कुल भी।' कविता ने मुस्कुराते हुए कहा।

'अच्छा जी और बोलो' रवि ने कविता को पकड़ लिया और उसके बिल्कुल करीब आ गया, कविता की आंखें बंद हो गईं और रवि ने उसको बाहों में उठा कर घुमाना शुरू कर दिया।

'छोड़ो-छोड़ो मुझे डर लग रहा है, प्लीज़ रवि प्लीज़, उतार दो नही तो मैं गिर जाऊंगी। प्लीज रवि छोड़ दो। मेरे प्यारे पति, तुम बहुत प्यारे हो, कोई शैतानी नहीं है तुम्हारे में। प्लीज् मेरी जान निकल जाएगी।' कविता रिक्वेस्ट करते हुए कहती है।
 
'पापा! मम्मा को डर लग रहा तो मुझे ही घुमा दो न। प्लीज प्लीज। मम्मा तो ऐसे ही डरती है।' मोनू विश मांगने के बाद आंख खुलने पर कहता है।

'हां इसको घुमा दो।' कविता मुस्कुराती हुई नजर से इशारा कर कहती है उतारो न, और बहुत प्यार से रवि के गले लगते हुए नीचे उतर जाती है लेकिन रवि अंधेरे का फायदा उठा चुपके से कविता के होठों को चूम लेता है। कविता झट से उससे दूर हो जाती है।

'हाँ सच कहा बेटा, मम्मा तो बस चिल्ला सकती हैं उनको घूमने का मज़ा क्या होता कहाँ मालूम।' रवि मोनू को गोदी में लेकर घुमाने लगता है। मोनू जोर से हंसने लगता है।

'बच्चे के बाप हो गए हो लेकिन दिमाग नहीं है बिल्कुल। ये गाँव है शहर नहीं।' कविता धीमे से बोलती है।

'चलो अब नीचे, बहुत रात हो गई है और खाना खा कर सोना भी है फिर कल सुबह जल्दी उठ कर घूमने चलेंगे। चलो अब मस्ती और बातें बनाना बन्द करो।' कविता मोनू को रवि की गोद में से उतार कर कहती है। 

'अरे हाँ, रात भी हो गई है। कल जाना भी है मोनू को गाँव दिखाने। चलो चलते हैं।' रवि कविता और मोनू का हाथ पकड़ कर नीचे को चलने लगा। मोनू बेमन से साथ जाने लगा। उसका बिल्कुल मन नहीं था ये सब छोड़ कर जाने का।

'कविता सुनो! याद रखना, कल का एक न्यौता आया हुआ है। पड़ोस वाले चाचा जी के घर से। उनके पोते का मुंडन है, आज वो कहने आये थे।' रवि ने बताया।

'अच्छा ठीक है।' कविता ने कहा। 

सब लोग नीचे जाकर खाना खाकर सोने की तैयारी करने लगे। मोनू लेट तो गया लेकिन उसका मन सोने का बिल्कुल नहीं था। उसका मन बाहर जुगनू और सितारों में अटका हुआ था। बहुत मनाने पर वो आंख बंद करके लेट गया। उसके चेहरे पर बड़ी प्यारी मुस्कान थी जैसे वो आंख बंद कर बाहर घूम रहा हो। थोड़ी देर में ही वो सो गया।

रवि और कविता कुछ देर के लिए छत पर आ गए। वहीं रखी चारपाई पर कविता लेट गई। रवि उसके बगल मैं बैठ उसके बालों में, उसके गालों पर हाथ से सहलाने लगा और कुछ लाइन जो अभी उसके जहन पटल पर अवतरित हुईं थी को गुनगुनाने लगा.....

है बहुत खूबसूरत हसीन रात ये, 
तेरी जुल्फें और तारों की बारात ये,
जुगनुओं आओ, दामन को रोशन करो,
रात बहकी, तेरी ही है सौगात ये।

देखूं छत पर तुम्हें रोज आती हुई,
धूप में जेठ की मुस्कुराती हुई,
दर्द दिल में छुपा कर जो रखा सनम,
रोज जाती हो उसको बढ़ाती हुई।
सारे फूलों से जग के, तुम तो हसीं,
नाज़ जिसपर करे बाग, तुम वो कली।
टूट कर प्यार हो कोई ऐसा जतन,
कितनी दिलकश मोहब्बत की बरसात ये,
जुगनुओं आओ दामन को रोशन करो,
रात बहकी, तेरी ही है सौगात ये।

कविता उसका हाथ पकड़ कर कविता सुन रही थी। रवि कविता गुनगुना ही रहा था कि अचानक तेज हवा चलने लगी। दूर पश्चिम के आकाश में बादलों की परछाई दिखने लगी साथ ही बिजलियां चमकने लगी। ऐसा लग रहा था कि बादल आंधियों पर सवार होकर बिजली चमकाते हुए उन्हीं की ओर भागे चले आ रहे हैं। बिजली की चमक से एक बार को सब साफ साफ दिखता फिर एकदम से अंधेरा। इतनी दूर से बादलों के ये करतब शहरों में कहां देखने को मिलते हैं। वहां तो बस पेड़ों की जगह कंक्रीट के जंगलों ने ले ली है।

'हम जब पहले गर्मियों की छुट्टी में आते थे तो आम का सीजन होता था। हमारे बाग में भी काफी आम के पेड़ हैं। तब ये बारिश और आंधी आती थी तो हम सब कजन लोग बाग में पहुंच जाते थे और जितने कच्चे आम गिरते तो उनको लेकर आते थे, और अगले दिन उसका आचार डालते थे।' रवि ने कविता को बताया।

'अच्छा, दिन में आंधी आती तो जाते होंगे अभी तो रात है डिअर' कविता ने रवि के हाथों को हाथ में लेकर कहा।

'अरे दिन में तो जाते ही थे, कई बार रात को आंधी आती तो रात को भी जाते थे और असली मज़ा रात में आता था। थैला लेकर जाते थे, बाग में ज्यादा बारिश होने पर पानी भर जाता था। कभी कभी मिट्टी और पानी के अंदर हवाई चप्पल चुपक जाती थी और निकलती हाथ से ही थी वो भी मेहनत करके। एक कई बार तो लगता था अब गिरे।' रवि ने आगे बताना शुरू किया।

'वो तो चुपक ही जाती है मिट्टी में' कविता ने भी रवि की बात पर सहमति जताई।

'और चप्पल के बिना काटों का डर तो था लेकिन वो तो चप्पल में भी लग जाते थे। बाग में अंधेरे में टॉर्च लेकर जाना, हर तरफ हवा का शोर। बांस के रगड़ खाने की आवाजें। तेज हवा से पेड़ों की शाखाओं की आवाजें और वो एक साथ सैकड़ों मेंढकों की टर्र टर्र। सब कुछ बिल्कुल अलग होता था। ऊपर से गुप्प अंधेरा और एकदम से बीच-बीच में बिजली चमकने से दिन जैसा उजाला। बड़ा रोमांचक सा लगता था। उसी में बीच-बीच में ढप्प की आवाजें। जो आम के गिरने से आती थी। मिट्टी में गिरने की अलग, कीचड़ की अलग, पानी मे गिरने की अलग। कई बार तो सारी आवाज एक साथ। ठप्प, पट्ट, ठपक सब एक साथ। अब अंधेरे में आम कहाँ गिरा का पता या तो गिरते वक़्त टॉर्च की रोशनी से चलेगा या आवाज से पता लगाओ या बिजली चमकने की रोशनी से। बिल्कुल अलग तरह का आनंद था वो।' रवि ने आगे बताना जारी रखा।

'एक बार पता है रात 12 बजे के बाद आंधी आई। सब जाने लगे। मम्मी ने मना किया लेकिन मैं जिद्द करके चला ही गया। भारी बारिश थी। गर्मियों में बारिश का मज़ा अलग ही होता। तो हम गए पानी घुटनो तक आ गया था। लेकिन मज़ा तो मज़ा था। उस दिन मेरे बिल्कुल बगल में दो बार बड़े बड़े आम गिरे। लगा जैसे पता नही क्या गिर गया। एकदम से बिल्कुल बगल में छपाक छप्प। जान ही निकल गई। अगर 2 इंच भी इधर उधर होता तो सर या किसी हिस्से पर ही गिरते, वैसे ये कई बार होता भी था। बहुत मज़े लिये, हम तो दूसरे के बाग में भी घुस जाते थे अगर वहां कोई नहीं होता था तो। और उस दिन तो अचानक ओले गिरने लगे बड़े बड़े। हम सब भाग कर वापस आये। मेरे पास ही कम से कम सात आठ किलो से ज्यादा ही आम थे। थैला भर जाने पर बनियान उतार उसको बांध कर उसका थैला भी बना लिया था जो घर आते आते फट गया, बड़ी डांट लगी। ये आनंद शायद आज की जनरेशन को न मिले। वो बरसात की रातें मजा बहुत आता था।' रवि ने बताया।

'दिन में बारिश होने पर अलग ही मज़ा होता था दूर दूर तक बारिश का मज़ा। देखो टर्र टर्र शुरू हो गई। तेज़ बारिश होगी शायद। और फिर सड़क के साथ साथ दोनों और जो ये गहरे गड्ढे हैं न उसमे पूरा पानी भर जाता था। उनमे मेंढक कूदते रहते, बड़ा मजा आता है उसमें। एक बार रात की शुरू हुई बारिश अगले दिन तक चली। सब जगह पानी पानी था। सड़क पर आंगन में और ये जो बगल में कुआं है न हमारा। उसमे ऊपर तक पानी भर गया था। बिना रस्सी में हाथ से पानी ले सकते थे। उस बार तो समझ लो बाढ़ आ गई थी। बस जहां तक देखो पानी और वही टर्र टर्र। उस समय चूल्हे के लिए लकड़ियों की जरूरत थी और लकड़ियां पानी में। भीगी लकड़ियों को चूल्हे में जलाना कितना मुश्किल होता है। लेकिन खाना तो बनाना ही था। तो बनाया ही गया, कैसे भी।' रवि ने आगे बताया।

इतने में ही तेज बारिश शुरू हो गई और कविता नीचे जाने लगी। रवि ने हाथ पकड़ कर उसको रोक लिया। 

'चलो न हम दोनों चलते है।' रवि ने बोला।

'अभी गर्मी नही है, और आम भी नही है अभी। तो क्यों जाएं?' कविता ने हाथ छुड़ाते हुए कहा। 

'तुम्हारे साथ होना कौन से गर्मी से कम है।' रवि में पकड़ कर कविता को चारपाई पर बैठा दिया। 

'अच्छा जी, तो जल जाओ न, तुमको तो मज़ा आता है। चलो बारिश में भिगो दिया मुझको।' और कविता नीचे भाग गई। रवि भी उसके पीछे पीछे नीचे चला गया। तभी बड़ी जोरदार आवाज हुई जैसे पास ही बिजली गिरी हो। और कविता रवि के गले लग गई और उसको कस कर पकड़ लिया।

क्रमशः

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